‘मासिक चक्र में शर्म या डर की कोई बात नहीं’ 17 साल की रवीना Covid-19 महामारी में भी फैला रही जागरूकत
punjabkesari.in Thursday, May 06, 2021 - 06:03 PM (IST)
सत्रह वर्षीय रवीना बैरवा को उम्मीद है कि कोविड -19 की दूसरी लहर गांव की किशोरियों व युवतियों को फिर से माहवारी सम्बन्धी उत्पादों और स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित नहीं करेगी
कोविड -19 की दूसरी लहर भारत की स्वास्थ्य सेवाओं पर भारी साबित हो रही है और आर्थिक एवं सामाजिक असमानता पहले से भी अधिक बढ़ गयी है। ऐसे हालात में टोंक, राजस्थान की सत्रह वर्षीय रवीना बैरवा कुछ सकारात्मक करने की कोशिश कर रही हैं। वो न सिर्फ गांव की किशोरियों को माहवारी से सम्बंधित सही जानकारी देती हैं बल्कि इस वैश्विक महामारी में ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं तथा सेनेटरी नैपकिन जैसे ज़रूरी उत्पादों की कमी की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित करना चाहती हैं।
रवीना कहती हैं, "महामारी की दूसरी लहर किशोरियों के सैनिटरी पैड्स तक पहुंच और माहवारी स्वच्छता प्रबंधन को ओर भी चुनौतीपूर्ण बना देगी।"अपर्याप्त चिकित्सा ढाँचे और सामाजिक मानदंड किशोरियों की प्रगति को रोकते हैं और उन्हें बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल, सूचना और शिक्षा तक पहुँचने से रोकते हैं ।" रवीना की यह बात सही प्रतीत होती है क्योंकि आंकड़ों के अनुसार बाल विवाह के मामलों में टोंक पुरे राज्य में तीसरे स्थान पर आता है। NFHS 4 सर्वेक्षण के अनुसार टोंक जिले में लगभग 47 प्रतिशत किशोरियां ऐसी है जिनका विवाह 18 वर्ष की आयु से पहले हो गया था।
लड़कों द्वारा स्कूल में रवीना का उड़ाया गया था मजाक
स्वयं रवीना को बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ा । सरकारी विद्यालय में पढ़ते हुए जब रवीना को मासिक धर्म शुरू हुआ उसकी पहली प्रतिक्रिया डर और शर्म की थी और भावनात्मक रूप से कमजोर समय के दौरान लड़कों द्वारा स्कूल में उसका मजाक उड़ाया गया । उसकी भाभी ने उसे कपडे का पैड बना कर इस्तेमाल करने की सलाह दी। परन्तु मासिक धर्म के बारे में उसका दृष्टिकोण तब बदला जब उसकी मुलाकात माया नाम की एक कार्यकर्ता से हुई जो फाया परियोजना के अंतर्गत शिव शिक्षा समिति के साथ जुड़ी है । फाया परियोजना पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया द्वारा राजस्थान के 4 जिलों - डूंगरपुर, करौली, बूंदी और टोंक में द यंग पीपुल फाउंडेशन (TYPF) और फील्ड पार्टनर्स के सहयोग से क्रियान्वित की जा रही है।परियोजना का उद्देश्य किशोरों को उनके यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य (SRH) सम्बन्धी आवश्यक जानकारी देना और अनुकूल वातावरण का निर्माण करना है. माया ने रवीना को फाया परियोजना के तहत गठित किशोर समूह की बैठक से जोड़ा, शुरू में रवीना अपनी बात रखने में, सवाल पूछने में झिझकती थी, परन्तु जैसे जैसे उसे स्वस्थ्य सम्बन्धी शिक्षा मिली वह अपने स्वस्थ्य से जुडी समस्याओं पर खुलके चर्चा करने लगी।
रवीना परिवर्तन की एक सच्ची चैंपियन हैं
वरिष्ठ राज्य कार्यक्रम प्रबंधक, पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया , दिव्या संथानम कहती हैं, "रवीना परिवर्तन की एक सच्ची चैंपियन हैं वे स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करना चाहती हैं। परिवार और समाज के दबाव के बावजूद भी वह अपनी पढ़ाई जारी रखने में सफल हुई। रवीना अपने गाँव की पहली लड़की है जिसने विज्ञान विषय चुना और स्कूली शिक्षा जारी रखने के लिए गाँव से बाहर निकली. उससे प्रेरित होकर गांव की चार और लड़कियां आगे पढ़ने के लिए टोंक जाने लगी हैं। पिछले साल, लॉकडाउन के दौरान , रवीना ने पूर्व उप मुख्य मंत्री सचिन पायलट को एक पत्र भी लिखा था जहाँ उन्होंने मांग की थी की स्कूल में पर्याप्त सेनेटरी उत्पादों तथा आयरन की गोली को उपलब्ध करवाए जाएं और एक इंसीनरेटर मशीन (जिससे गंदे सेनेटरी पैड्स का सही निस्तारण हो सके) लगवाई जाये।”
मासिक चक्र में शर्म या डर की कोई बात नहीं
रवीना कहती हैं, " किशोर समूह की बैठकों से जुड़कर मुझे यह समझ आया की सही जानकारी, हमें सही निर्णय लेने में समर्थ बनती है और इसीलिए मैंने फैसला किया कि मैं अपने जैसी अन्य किशोरियों को भी जगरूख करके उनके विकास में सहयोग करूंगी। मुझे याद है कि जब मेरी एक क्लास-मेट का पीरियड शुरू हुआ तो मैंने उसकी मदद की और उसे आश्वस्त किया कि मासिक चक्र पूरी तरह से एक प्राकृतिक प्रक्रिया हैं अतः इसमें शर्म या डर की कोई बात नहीं है।” अब तक रवीना, 100 से अधिक किशोरियों को उनके प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देकर उनको सशक्त बनाने में अपना योगदान दे चुकी हैं । रवीना बताती हैं मेरा सपना है की मैं एक Auxiliary Nurse Midwife (ANM) बनकर लोगों की मदद कर सकूं और साथ ही लड़कियों को प्रेरित कर पाऊं की वे भी अपने स्वास्थ्य एवं शिक्षा सम्बन्धी अधिकारों को पाने की हिम्मत जुटा पाएं।"
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