समय रहते बचे, रेबीज है जानलेवा बीमारी!

punjabkesari.in Monday, Jan 02, 2017 - 05:07 PM (IST)

सेहत: रेबीज नामक रोग प्राचीन रोगों में से एक है। एक बार इस रोग के लक्षण उत्पन्न हो जाएं तो मृत्यु होने की संभावना बड़ जाती है। इस बीमारी के बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं होती। 

रेबीज एक विषाणुओं द्वारा होने वाला संक्रमक रोग है। इसका यह विषाणु ज्यादातर जानवरों जैसे कुत्ते, बिल्ली, चूहे अन्य आदि में पाया जाता है। इस रोग के विषाणु 0.0008 मि.मी लंबे और 0.00007 मि.ली व्यास वाले होत है। जानवरों द्वारा यह रोग इंसानों में फैलता है। 

चमगादड़ में रेबीज की उपस्थिति 

रक्त शोषक चमगादड़ में इस रोग की उपस्थिति ज्यादा होती है। चमगादड़ इस विषाणु को काफी समय तक अपने अंदर धारण किए रहते है। इसलिए शायद उनमें जीवनभर इस रोग के विषाणु पाएं जाते है। मध्य और दक्षिण अमेरिका में चौपाए जानवरों की मौत का कारण ये चमगादड़ ही समझे जाते है।  


रेबीज के लक्षण होने पर मर जाता है जानवर 

कुत्ते और बिल्लियों में इस रोग का संक्रमण या लक्षण होने में एक सप्ताह से एक वर्ष भी लग जाता है। 90 प्रतिशत मामलों में इल रोग के लक्षण 30 से 90 दिन में प्रकट हो जाते हैं। इस रोग के लक्षण एक बार होने पर बढ़ते चले जाते है और 10 दिन के अंदर ही जानवर की मौत हो जाती है। 

जानवर को जलाना आवश्यक 

रेबीज से ग्रस्त जानवर को जला दिया जाता है फिर इसको परीक्षण के लिए भेज दिया जाता है। इससे विषाणुओं की उपस्थिति और अनुपस्थिति का पता चल जाता है। 


रेबीज होने के लक्षण 

  व्यवहार में बदलाव
  आक्रामक होना, काटने लगना
  अधिक लार टपकना 
  पैर और जीभ पर लकवा हो जाना 
  शरीर में एंठन होना और अंत में मर जाना 


टीका लगाना जरूरी 

एक बार इस रोग के लक्षण पैदा हो जाने पर इसका कोई सफल इलाज नहीं है। इस रोग से ग्रस्त जानवर का इलाज नहीं किया जाता बल्कि सोने दें। इनसे बचने के लिए समय-समय पर उन्माद निवारक टीका लगवाते रहे। 


संक्रमण फैलने का कारण 

इस रोग का सक्रमंण जानवरों से हवा द्वारा लोगों में जाता है। कुछ लोगों में यह सक्रमंण काटने से होता है। जानवरों की लार द्वारा भी विषाणु व्यक्ति के घाव में प्रवेश कर जाते है। वहीं फैलते-फैलते इंसान के मस्तिष्क में चले जाते है। धीरे-दीरे सारे शरीर में पैल जाते है। 

रोग के प्रारंभिक लक्षण 

सिर दर्द, बुखार, मितली आना, भूख न लगना, असहाय पीड़ा और प्रभावित क्षेत्र में जलन आदि। इसी के साथ व्यक्ति में तनाव, भय और उत्तेजना की वृद्धि होती है। मांसपेशियों में जकड़न, पीया पानी बाहर आना। इसलिए इस रोग का नाम जल आतंक अर्थात् हाइड्रोफोबिया रखा गया है। इसलिए व्यक्ति को ऐसे लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए क्योंकि इसके चलते मौत भी हो सकती है। 

 

रेबीज का इलाज 

इस रोग के उपचार के लिए पेट में 14 सुइंया लगाई जाती है। टीका कुत्ते या बिल्ली के काटने के 10 से 20 दिन के अंदर-अंदर लगा लेना चाहिए। इस रोग से पशु चिकित्सक, चिड़ियाघर रक्षक और चुंगी निरीक्षक आदि अधिक प्रभावित होते है। इसलिए वह इससे बचने के लिए एच.डी.सी.वी. की रोकथाम की खुराक लेते है। विश्व स्वास्थ्य संगठन 1-1मि.ली की तीन खुराक 0, 7 और 28 दिन पर लेने की अनुमति देते है। इससे रोगप्तिरोधक शक्ति बढ़ती है। इस दवा को हर दो साल बाद लें। अगर किसी जानवर ने काट लिया है तो प्रभावित स्थान को 10 मिनट तक पानी और साबुन से अच्छी तरह से धोएं। इससे विषाणु दूर होते है। इसके बाद किसी चिकित्सक की सलाह लें। 


अगर जानवर पालतू है और उसने पेट के नीचे काट लिया है तो तुरंत चिकित्सा न करें, बल्कि कुछ दिन तक प्रतीक्षा करें। अगर आपको 5 दिन में कोई लक्षण प्रतीत हो तो उपचार प्रारंभ कर दें। यदि जानवर 5 दिन से अधिक जिंदा रहता है तो रोग के कोई लक्षण प्रतीत नहीं होते तो चिकित्सा तुरंत बंद कर दें। 

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