इंजीनियरिंग दाखिला के लिए प्रिंसिपल ने रखी 3 शर्ते, पति को दिए 3 साल और 3000 और रच दिया इतिहास

punjabkesari.in Saturday, Nov 20, 2021 - 11:59 AM (IST)

महिलाएं अगर ठान लें तो क्या नहीं कर सकती? बस मन में निश्चय और विश्वास जरूर होना चाहिए। ऐसे ही दृढ़ संकल्प से सफलता का मुकाम हासिल कर खुद को अनोखी पहचान दी थी सुधा मुर्ति जी ने। जी हां, सुधा मूर्ति जो दुनिया की टाॅप IT कंपनियों में शामिल इन्फोसिस फाउंडेशन के संस्थापक एन. आर. नारायणमूर्ति की पत्नी एवं इंफोसिस फाउंडेशन की चेयरपर्सन व प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वह भारत की पहली ऐसी महिला थी जिन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री ली। चलिए उनके सफल जीवन की प्रेरणादायक स्टोरी आपके साथ शेयर करते हैं।

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इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में पूरे राज्य में टॉप किया

कनार्टन के शिगांव में 19 अगस्त 1950 में सुधा मूर्ति का जन्म हुआ और शादी से पहले वह सुधा कुलकर्णी हुआ करती थी। उन्होंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन की और राज्य में टॉप भी किया। इसके लिए कर्नाटक के मुख्यमंत्री उन्हें रजत पदक भी प्राप्त हुआ। उसके बाद उन्होंने ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस’ से कंप्यूटर साइंस में मास्टर्स डिग्री ली। इसमें भी वह टॉपर रही और इस उपलब्धि के लिए उन्हें स्वर्ण पदक मिला।

इंजीनियरिंग करने के लिए प्रिंसिपल ने उनके सामने रखीं थी 3 शर्तें

हालांकि उस समय लड़कियों का इंजीनियरिंग (Engineering) करना अनोखी बात थी। खुद सुधा के घर वाले इससे सहमत नहीं थे लेकिन सुधा की जिद के आगे सबको झुकना पड़ा। जैसे ही उनका दाखिला BVB College of Engineering and Technology में हुआ प्रिंसिपल ने उनके सामने 3 शर्तें रखीं।

पहली शर्त थी कि उन्हें ग्रेजुएशन खत्म होने तक साड़ी में ही आना होगा।
दूसरी शर्त कैंटीन नहीं जाना होगा।
तीसरी शर्त थी कि सुधा कॉलेज के लड़कों से बात नहीं करेंगी।

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एक इंटरव्यू में सुधा ने खुद बताया, 'आज से 50 साल पहले का समाज अलग था। उस समय मैथ्य और फिजिक्स में बहुत कम लोग M.sc करते थे लेकिन मेरे मन में पढ़ने की इच्छा थी। तब मुझे लोग एब्नॉर्मल समझते थे कि क्योंकि मैं इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना चाहती थी'

सुधा ने पहली 2 शर्तें पूरी की और तीसरी खुद-ब-खुद पूरी हो गई क्योंकि वह एकमात्र लड़की थी जो जो इंजीनियरिंग कर रही थी। ऐसे में कॉलेज में टॉयलेट भी लड़कों के लिए ही था। जैसे-तैसे उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी । आप सुधा के दर्द का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि जब इंफोसिस शुरू हुआ वो सबसे पहले उन्होंने टॉयलेट ही बनवाए। वह देशभर में करीब 16 हजार टॉयलेट बनवा चुकी हैं।

पति को दिया 3 साल का वक्त

नारायण मूर्ति ने इंफोसिस कंपनी की शुरुआत की लेकिन इस कंपनी की शुरुआत सुधा मूर्ति की बचत पूंजी से हुई थी। उन्होंने 10,000 रुपये जोड़ कर नारायणमूर्ति (NR Narayana Murthy) को दिए थे जिससे उन्होंने इस कंपनी को शुरू किया था। दरअसल, किताबें पढ़ने का शौक रखने वाले नारायण और सुधा किताबों के जरिए ही एक दूसरे से मिले थे। जब पूणें में सुधा से वह मिलते थे उस समय उनके पास पैसे नहीं हुआ करते थे। उस समय रेस्टोरेंट्स में खाने -पीने का बिल सुधा ही चुकाती थीं। तब नारायण उन्हें कहते थे कि वह उनका उधार बाद में चुका देंगे। सुधा ने तीन साल तक इस उधार का हिसाब रखा और जुड़ते-जुड़ते ये 4 हजार तक पहुंच गया था। उस समय यह कीमत काफी ज्यादा थी हालांकि  शादी के बाद सुधा ने इस उधार के हिसाब की किताब फाड़ दी थी। लेकिन शादी के बाद उन्होंने इन्फ़ोसिस शुरू करने के बारे में आपसी चर्चाएं की इस पर सुधा ने पति से कहा था कि वह 3 साल का वक्त उन्हें दे रही हैं। इस दौरान वह घर का सारा खर्च उठाएंगी और वह अपना सपना पूरा करें।

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दरअसल, उस समय सुधा, टाटा इंडस्ट्रीज में काम करती थी। इसी नौकरी से जुड़ी अपनी 10 हजार की सेविंग्स उन्होंने पति को दी थी। नारायण मूर्ति आज भी बड़े गर्व से यह बात लोगों को बताते हैं। सुधा टाटा में काम करने वाली पहली महिला इंजीनियर थी और इस नौकरी के लिए उन्होंने जेआरडी को कड़ा पत्र लिखा था।

टाटा मोटर्स की पहली महिला इंजीनियर बनी सुधा मूर्ति

जी हां, सुधा मूर्ति, टाटा मोटर्स के एक नियम को लेकर बिजनेस टायकून जेआरडी टाटा से भिड़ गई थी। जब इसका अहसास जेआरडी को हुआ तो उन्होंने नियम बदलने का निर्देश दिया। नियम बदले जाने के बाद ही सुधा मूर्ति टाटा मोटर्स की पहली महिला इंजीनियर बन गई थीं।

दरअसल एक समय था जब भारत की सबसे बड़ी ऑटो निर्माता कंपनी टेल्को में महिलाओं को रोजगार नहीं मिलता था और इसमें बदलाव सुधा मूर्ति ने ही किया। साल 1974 की बात है जब एक दिन अखबार में टेल्को (टाटा मोटर्स) में नौकरी का विज्ञापन देखा लेकिन विज्ञापन में उल्लेख किया गया था कि केवल पुरुष ही आवेदन कर सकते हैं। इस बात को लेकर सुधा ने जेआरडी टाटा को एक पत्र लिखा- सुधा ने 'सिर्फ पुरुषों के लिए' शब्द को उद्धृत करते हुए लिखा कि महिलाएं पुरुषों से बेहतर काम करती हैं और अगर उन्हें मौका नहीं दिया गया तो वे खुद को साबित नहीं कर पाएंगी। जब उन्हें कंपनी की गलती का एहसास हुआ तो उन्होंने न सिर्फ 'पुरुष कर्मचारी' नीति को बदल दिया और महिला आवेदकों के लिए भी साक्षात्कार और परीक्षा आयोजित करने का आदेश दिया।" नतीजतन, सुधा को एक विशेष साक्षात्कार के लिए बुलाया गया और तुरंत काम पर रखा गया।

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सुधा मूर्ति ने किए कई सामाजिक कार्य

मूर्ति को उनके सामाजिक कार्यों के लिए भी जाना जाता है। वह एक क इंजीनियर के साथ-साथ एक शिक्षक तथा कन्नड़, मराठी और अंग्रेजी लेखक भी हैं। उन्होंने कई अनाथालयों की स्थापना की। कर्नाटक के सभी सरकारी स्कूलों को कंप्यूटर और पुस्तकालय प्रदान करने के आंदोलन का समर्थन किया। उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में 'द मूर्ति क्लासिकल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया' की भी स्थापना की।

बहुत से लोग नहीं जानते कि सुधा मूर्ति ने भारत में 60 हजार पुस्तकालय, नए स्कूल और 16 हजार से अधिक शौचालय खोलने में मदद की है उनके सराहनीय कार्यों के लिए उन्हें पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा उन्हेंपद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

बता दें कि नारायण मूर्ति की कंपनी इन्फोसिस की मार्केट कैपिटल तकरीबन 2.50 लाख (2015 तक) करोड़ रुपए थी। कंपनी में करीब 2 लाख कर्मचारी काम करते हैं।

तो देखा आपके सुधा के शिक्षा हासिल करने के एक दृढ़ निश्चय ने उन्हें एक अनोखी ही पहचान दिला दी। आज वह लाखों महिलाओं की आर्दश हैं इसलिए अपने सपनों को पूरा करें और आगे बढ़ते जाएं।

 

 

 


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Content Writer

Vandana

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