प्रैग्नेंसी के आखिरी तीन महीने कौन से टेस्ट करवाने जरूरी? गर्भवतियों के लिए जानकारी

punjabkesari.in Saturday, Feb 15, 2025 - 06:39 PM (IST)

 नारी डेस्क: प्रैग्नेंसी का अऩुभव मां के लिए सबसे खास अनुभव रहता है। वैसे तो 9 के 9 महीने ही खास रहते हैं। 9 महीने की प्रेगनेंसी को तीन तिमाही में बांटा गया है। पहली तिमाही, दूसरी तिमाही और आखिरी तिमाही। आखिरी तिमाही का समय 28वें सप्ताह से शुरू होकर 40वें सप्ताह तक चल सकता है।  32वें हफ्ते के आस-पास शिशु की हड्डियां पूरी तरह से विकसित हो जाती है। शिशु आपनी आंखे खोलने व बंद करने लगता है। सूरज की रोशनी महसूस करने लगता है और 36वें हफ्ते तक उसका सिर योनि की ओर आ जाता है और 37वें हफ्ते में शिशु का सारा शरीर खुद काम करने के लिए तैयार रहता है और उसकी लंबाई 19 से 21 इंच और वजन 6 से 9 पाउंड के बीच हो जाती है।

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इसमें बच्चे का पूर्ण विकास हो जाता है और महिला के शरीर में कई बदलाव तेजी से आते हैं। चलिए, आज तीसरी तिमाही में होने वाले बदलावों और समस्याओं के बारे में आपको बताते हैं। यह समय महिला के लिए शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरह से चुनौतीपूर्ण होता है। बच्चे का मूवमेंट तेजी से होता है और महिला को बच्चे की सुरक्षा और सुरक्षित प्रसव की चिंता होने लगती है।

इस समय महिलाओं को कई तरह की समस्याएं आती हैं जैसे -उठने बैठने व सोने में दिक्कत, शिशु की मूवमेंट ज्यादा होना, सीने में जलन, हैवीपन, ब्लोटिंग और ब्रेस्ट में दर्द, चेहरे हाथ-पैर में सूजन, पेट व गर्भाश्य का टाइट होना आदि ये सब होना तो आम ही रहता है हालांकि अगर दर्द, ब्लीडिंग, शिशु मूवमेंट कम होना या शरीर में सूजन अधिक बढ़ रही हो तो बिना देरी डाक्टरी जांच जरूर करवाना जरूरी हो जाता है।

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डॉक्टरी जांच कब-कब जरूरी?

तीसरी तिमाही में आपको जल्दी ही डॉक्टरी चेकअप करवाते रहना चाहिए। 28 से 36 सप्ताह की गर्भावस्था के बीच आपको शायद हर दो हफ्तों में डॉक्टरी चेकअप के लिए जाना पड़े  और इसके बाद आपको शिशु के जन्म तक हर हफ्ते डॉक्टरी जांच के लिए जाना होगा।

36 सप्ताह की गर्भावस्था के आस-पास डॉक्टर आपकी अंदरुनी जांच कर सकती। हो सकता है कि अंदरूनी जांचें हर हफ्ते एक बार हो, यह गर्भवती की स्वास्थ स्थिति पर निर्भर करती है। इससे पता लगाया जाता है कि ग्रीवा का विस्फारण कितना हुआ है।

प्रेगनेंसी की तीसरी तिमाही में कौन से टेस्ट करवाने होंगे?

28 और 32 सप्ताह से पहले आपको ग्रोथ स्कैन या फीटल वेलबींग स्कैन करवाना होगा।

अगर शिशु उतनी अच्छी तरह या ज्यादा बार हिलजुल नहीं रहा है, जितना उसे करना चाहिए।

आपका शिशु ब्रीच अवस्था (सिर ऊपर और नितंब नीचे की तरफ) में है।

आपके गर्भ में जुड़वा या इससे ज्यादा शिशु हैं।

पिछले स्कैन में गर्भनाल शिशु की गर्दन के चारों तरफ दिखाई दी थी।

एमनियोटिक तरल की मात्रा सामान्य से ज्यादा या कम है।

आपका शिशु अपनी गर्भावधि उम्र के अनुमान से छोटा लग रहा है।

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इसके अलावा जेस्टेशनल डायबिटीज व यूरिन टेस्ट किए जाते हैं। यूरिन के जरिए इंफेक्शन या बीमारी का पता चलने में मदद मिलती हैं। अगर प्रोटीन की मात्रा अधिक हो तो यूटीआई का संकेत हो सकता है। अगर साथ में हाई ब्लड प्रैशर भी हो तो ये  प्री-एक्लेम्प्सिया का भी लक्षण हो सकता है।

तीसरी तिमाही में क्या समस्याएं हो सकती है?

खुद को इस समय शांत रखें। इस दौरान महिला को नींद ना आने, जेस्‍टेशनल डायबिटीज, हाई बीपी, सांस लेने में दिक्कत, डिप्रैशन और डीप वेन थोम्बोसिस की दिक्‍कत भी हो सकती है।
इन सारी समस्याओं से बचने का उपाय ये कि आप संतुलित आहार खाएं औऱ तनाव मुक्त रहें। भरपूर पानी पीएं। रूटीन चेकअप करवाती रहें। जिस कार्य से आपको खुशी मिलती है वो ही करें।

क्या गर्भावस्था के अंतिम चरण में नई डॉक्टर चुनना सही है?

अगर आप कहीं और सफर कर जा रही हैं तो पहले डॉक्टरी सलाह जरूर लें।

अपने सारी मेडिकल रिपोर्ट गर्भावस्था की शुरुआत से अब तक कि खून की जांचों और अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट साथ लेकर जाएं।

यदि यह आपकी पहली प्रैगनेंसी नहीं है तो आपको पिछली प्रैगनेंसी में कोई समस्या या कॉम्पिकेशन रही हो, तो इसके बारे में डॉक्टर को बता सकती हैं।

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याद रखिए कि गर्भावस्था के इस चरण को आसान और सुखदायी बनाने के लिए पौष्टिक संतुलित आहार खाएं और रैगुलर चेकअप करवाते रहें। इससे मां और शिशु दोनों ही स्‍वस्‍थ रहेंगे।

डिस्कलेमरः यह सामान्य जानकारी हैं ज्यादा जानकारी के लिए अपनी गाइनाकोलोजिस्ट से परामर्श लेना जरूरी है। 


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Content Writer

Vandana

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