Pitru Paksha 9th Day: आज मातृ नवमी पर करें श्राद्ध, जानें विधि, महत्व और शुभ मुहूर्त
punjabkesari.in Monday, Sep 15, 2025 - 10:18 AM (IST)

नारी डेस्क: पितृ पक्ष के नौवें दिन यानी नवमी तिथि को मातृ नवमी के रूप में जाना जाता है। यह तिथि विशेष रूप से उन दिवंगत माताओं और महिला पितरों के श्राद्ध के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है, जिनकी मृत्यु नवमी तिथि को हुई हो या जिनकी मृत्यु की सही तिथि ज्ञात न हो। इस दिन किया गया श्राद्ध, पितरों को तृप्ति देने के साथ-साथ परिवार में सुख, शांति और समृद्धि भी लाता है।
मातृ नवमी का महत्व क्या है?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष में हर दिन किसी विशेष तिथि के अनुसार अलग-अलग श्राद्ध किए जाते हैं। नवमी तिथि, मृत माताओं एवं उन महिलाओं के श्राद्ध के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है, जिनकी मृत्यु समय से पहले, दुर्घटना, गर्भपात या प्रसव के दौरान हुई हो। इसके अलावा, ऐसे पूर्वज जिनकी मृत्यु किसी भी महीने की नवमी तिथि को हुई हो, उनका भी श्राद्ध आज किया जाता है। यदि किसी की मृत्यु की तिथि याद नहीं है, तो उनके लिए भी नवमी तिथि का श्राद्ध उपयुक्त होता है।
नवमी तिथि से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी
श्राद्ध तिथि: 15 सितंबर, सोमवार
नवमी तिथि प्रारंभ: 15 सितंबर, सुबह 3:06 बजे से
नवमी तिथि समाप्त: 16 सितंबर, सुबह 1:31 बजे तक
इस वर्ष नवमी तिथि सोमवार को पड़ रही है, जिससे इसका महत्व और अधिक बढ़ गया है। सोमवार भगवान शिव को समर्पित दिन है, और पितरों से जुड़ी विधियों में शिव पूजा को भी विशेष महत्व दिया जाता है।
कुतुप काल: श्राद्ध का सर्वोत्तम समय
पितृ पक्ष में कुतुप मुहूर्त को श्राद्ध और तर्पण के लिए सबसे शुभ माना जाता है। यह मुहूर्त दोपहर का होता है और इसका संबंध सीधे पितरों से माना गया है।
कुतुप काल: दोपहर 12:09 बजे से 12:58 बजे तक
रोहिणी मुहूर्त: दोपहर 12:58 बजे से 1:47 बजे तक
इस दौरान श्राद्ध और पिंडदान करने से पितरों को विशेष तृप्ति मिलती है।
किन पितरों का किया जाता है नवमी तिथि पर श्राद्ध?
जिनकी मृत्यु किसी भी महीने की नवमी तिथि को हुई हो। माताएं या महिला पितर जिनका निधन हो चुका है। जिनकी मृत्यु की सटीक तिथि ज्ञात न हो। हिंसा, हत्या, जहर या दुर्घटना से मृत्यु पाने वाले। गर्भपात या प्रसव के दौरान मृत्यु को प्राप्त महिलाएं। कम उम्र या अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए लोग।
नवमी तिथि पर श्राद्ध कैसे करें?
श्राद्ध की प्रक्रिया बेहद सरल लेकिन श्रद्धा से पूर्ण होनी चाहिए। प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके अपने पितरों का स्मरण करते हुए संकल्प लें कि आज नवमी तिथि का श्राद्ध कर रहे हैं। एक पवित्र स्थान पर कुशा (दूब घास) बिछाएं। तिल, चावल और जल का उपयोग करके पिंड बनाएं। चावल, जौ का आटा, तिल और शहद मिलाकर पिंड तैयार करें। तिल मिश्रित जल अर्पित करते हुए “ॐ पितृभ्यः स्वधा” मंत्र का जाप करें। दोपहर के समय किसी योग्य ब्राह्मण को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा दें। गाय, कुत्ते, कौए और ज़रूरतमंद लोगों को भोजन कराना भी श्राद्ध का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। अंत में पितरों से परिवार की रक्षा और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मांगे।
पितरों की कृपा से मिलती है समृद्धि
पितृ पक्ष का हर दिन पूर्वजों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए समर्पित होता है, लेकिन मातृ नवमी का विशेष महत्व है क्योंकि यह दिन महिलाओं और माताओं की आत्मा को श्रद्धांजलि देने का अवसर देता है। यदि विधिपूर्वक श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाए, तो न केवल पितरों को शांति मिलती है, बल्कि परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है। इस दिन की गई श्रद्धा और सेवा से संतान सुख, धन-धान्य और परिवार में शांति की प्राप्ति होती है।