पुत्र एकादशी 2021: जानिए इस व्रत से जुड़ा महत्व व पौराणिक कथा

punjabkesari.in Friday, Jan 22, 2021 - 05:30 PM (IST)

हिंदू कैलेंडर के मुताबिक, हर महीने की ग्यारहवीं तिथि एकादशी कहलाती है। ऐसे में हर साल  नि: संतान दंपति संतान प्राप्ति व उसकी लंबी आयु के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत रखती है। यह व्रत हर साल दो बार आता है। एक बार दिसंबर या जनवरी के महीनें में और दूसरी  श्रावण के यानी जुलाई से अगस्त के महीने में आती है। इसे श्रावण पुत्रदा एकादशी कहते हैं। साल 2021 का पुत्रदा एकादशी का पहला व्रत 24 जनवरी दिन रविवार को रखा जाएगा। इसे पौष पुत्रदा एकादशी या पौष शुक्ल पुत्रदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस निर्जला, फलाहारी या जलीय रखा जा सकता है। तो चलिए जानते हैं इस उपवास को रखने की पूजा विधि और कथा के बारे में...

इसतरह करें पौष पुत्रदा एकादशी व्रत की पूजा

- सुबह उठकर नहाकर साफ कपड़े पहनें। 
- फिर घर पर या मंदिर में जाकर विष्णु सहस्रनाम स्तोत्रम का पाठ करें। 
- उपवास में अनाज व चावल ना खाएं। 
- पूरा दिन अपना ध्यान प्रभु भक्ति पर लगाएं। 
- शाम के समय पर श्रीहरि की विधि-विधान से पूजा करके आरती गाएं। उसके बाद गरीब बेसहारा लोगों को अन्न, कपड़ा व जरूरत अनुसार दक्षिणा का दान करें। 

इस मंत्र का करें जाप

भगवान जी की असीम कृपा पाने के लिए 'ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र, विष्णु सहस्रनाम स्तोत्रम, विष्णु अष्टोत्रम।' मंत्र का जाप करें। 

तो चलिए जानते हैं पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा-

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भद्रावती राज्य में एक राजा राज्य करता था। उसका नाम सुकेतुमान था। कहा जाता है कि राजा के पास धन, दौलत की कमी ना थी। मगर नि: संतान ना होने के कारण वह हमेशा निराश रहते थे। ऐसे में एक दिन उन्होंने दुखी आकर प्राण त्यागने के बारे में सोचा। मगर ऐसा करना पाप समझ कर उन्होंने आत्महत्या नहीं की। मगर अपने राज्य में मन ना लगने के कारण वे सब कुछ छोड़कर जंगल की ओर चले गए। वहां जंगली जानवर व पक्षी देखकर राजा के मन में गलत-गलत विचार आने लगे। ऐसे में वह उदास होकर तालाब के पास जा बैठे। उसी तालाब के पास ऋषि मुनियों के आश्रम थे। तभी वे उस आश्रम में गए। तब ऋषि मुनियों ने खुश होकर राजा से उनकी इच्छा पूछी। तब राजा ने उन्हें संतान प्राप्ति की इच्छा बता दी। उनकी बात सुन कर मुनियों ने उन्हें पुत्रदा एकादशी की महिमा बताते हुए वह उपवास रखने को कहा। राजा ने उसी दिन से व्रत को आरंभ करके द्वादशी को विधि-विधान से इसका पारण किया। राजा के व्रत रखने से रानी ने कुछ दिनों बाद गर्भ धारण किया और फिर उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। तभी से इस उपवास को रखने की प्रथा शुरू हो गई। 

पुत्रदा एकादशी व्रत रखने का महत्व

 - मान्यता है कि इस व्रत को रखने व भगवान कृष्ण के बाल रूप की पूजा करने से नि:संतान को संतान की प्राप्ति होती है। 

- संतान से जुड़ी परेशानियां दूर होती है। 

- जीवन की परेशानियां दूर होकर घर में खुशियों का आगमन होता है। 

- कहा जाता है कि सच्चे मन से भगवान विष्णु की पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है। 

- संतान की  सेहत बरकरार रहने के साथ उसकी आयु लंबी होती है। 

 

Content Writer

neetu