कलावती की हिम्मत को सलाम, अपने हाथों से बनाए 4000 शौचालय

punjabkesari.in Saturday, Mar 14, 2020 - 06:34 PM (IST)

लोगों का कहना है कि सिर्फ शिक्षित व्यक्ति ही इस देश के निर्माण में हाथ बटा सकते है मगर हमारे ही देश की 58 वर्षीय कलावती देवी ने इस बात को भी गलत साबित कर दिया है। इस साल वीमेंस डे पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से नारी शक्ति पुरस्कार पाने वाली कलावती ने देश का ही नहीं बल्कि हर एक औरत का गौरव बढ़ाया है। सिर्फ इसी महिला की वजह से आज कानपुर खुले शौच से मुक्त है। 

 

4 हजार से अधिक शौचालय बना चुकी है कलावती 

वो एक राजमिस्त्री है। 58 साल की उम्र में कलावती 4000 से अधिक शौचालय बनाकर एक मिसाल कायम की है। श्रमिक भारती के साथ मिलकर उन्होंने न जाने कितने लोगों को जागरूक भी किया है। उन्हें बहुत ही बुरा लगता था जब सुबह-सुबह महिलाएं एवं पुरुष खुले में शौच करने जाते थे। उनसे यह कतई बर्दाश नहीं हो पा रहा था। इसलिए उन्होंने नुकड़ नाटक के जरिए लोगों में खुले शौच के बारें में नुक्सान बताकर सबकी आंखें खोलनी शुरू की। 

लोगों के ताने सुने फिर भी नहीं मानी हार 

कलावती को लोग गलियां निकालते थे, ताने देते थे यहां तक कि मोहल्ले में लोग जमीन खाली ही नहीं करना चाहते थे। उनका कहना है कि लोगों को शौचालय का महत्व समझ ही है आ रहा था। बहुत मेहनत करने के बाद लोगों को समझ आई। उसके बाद और भी बस्तियों ने कलावती की बात को समझते हुए शौचालय बनवाना शुरू किया। 


खुद चलाती है पूरा परिवार

बतादें कि कलावती के पति की मृत्यु हो गई थी। वो अपने बेटी और उसके दो बच्चे के साथ रहती है। किसी कारणवश उनके दामाद की भी मृत्यु हो चुकी है। वो अकेले सारे घर का खर्च अकेले चलाती है। 


मोहल्ले का था बुरा हाल 

जब वो शादी कर इस गांव में आई थी तब पूरे मोहल्ले में एक भी शौच नहीं था। उन्होंने खुले में शौच करने से इंकार भी किया। उन्होंने बहुत मुहीम लड़ी फिर जाकर अधिकारियों ने प्रपोजल रखा- यदि मोहल्ले के लोग शौचालय की कुल लागत का एक तिहाई खर्च उठाने को तैयार हो जाएं तो दो तिहाई पैसा सरकारी योजना के तहत लिया जा सकता है।

32 साल से कर रही है शौचालय बनाने का काम 

उन्हें बचपन से ही कुछ अलग करने की ललक थी। मगर वो कभी स्कूल नहीं गई। वो हमेशा से समाज सेवा करना चाहती थी। उन्होंने अपने हाथों से 50 से अधिक सामुदायिक शौचालय का निर्माण किया है। वो 32 साल से यह काम कर रही है। शादी के बाद वो श्रमिक भारती संस्था के साथ काम करने लगी। तब उन्होंने डूबे बस्ती के लोगों की हालत पर गौर किया। फिर उन्होंने बूंद बचत के साथ मिलकर प्रभावती और ऊषा समेत कई सदस्यों से दस-दस रुपये लेने शुरू किए और  निशुल्क शौचालय बनाने शुरू किए। 

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shipra rana