10वीं सदी का प्राचीन Trilokinath Temple हुआ ऑनलाइन, जानिए मंदिर की खासियत

punjabkesari.in Tuesday, Sep 07, 2021 - 04:23 PM (IST)

दुनियाभर में भगवान शिव के अनेकों मंदिर है। वहीं कोरोना फैलने के कारण देशभर के मंदिरों में भी प्रवेश की रोक लगा दी गई है। जहां कई मंदिरों के कपाट धीरे-धीरे खुलने लगे हैं वहीं दूसरी ओर कई धार्मिक स्थलों पर भक्तों को ऑनलाइन दर्शन करने की भी सुविधा दी जा रही है। ऐसे में ही भगवान शिव को समर्पित हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति जिले में स्थित एक मंदिर में अब ऑनलाइन दर्शन करने व आरती में हिस्सा लेने की सुविधा शुरु की जा रही है। चलिए जानते हैं इसे बारे में विस्तार से...

ऑनलाइन दर्शन होंगे दर्शन

प्रशासन की तरफ से जानकारी दी गई है कि अब शिव जी के पावन मंदिर में भक्त सुबह-शाम दोनों समय की आरती में ऑनलाइन हिस्सा ले सकते हैं।

हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति जिले में स्थापित 'त्रिलोकीनाथ मंदिर'

भगवान शिव के इस मंदिर का नाम 'त्रिलोकीनाथ मंदिर' है। इस पावन मंदिर का प्राचीन नाम टुंडा विहार माना जाता है। 10 वीं सदी में स्थापित एक बेहद प्राचीन मंदिर है। लाहौल और स्पीति जिले में चंद्रभागा नदी के किनारे स्थित कस्बा उदयपुर कई चीजों के लिए बेहद मशहूर है। यहां का टेंपरेचर माइनस 25 डिग्री सेल्सियस तक चले जाने के कारण सालभर में करीब 6 महीने यहां पर बर्फ रहती है। वहीं छोटी सी आबादी वाली यह जगह त्रिलोकीनाथ मंदिर के लिए देशभर में मशहूर है।

मंदिर की खासियत

भोलेनाथ के इस मंदिर की खासियत है कि यहां पर हिंदू और बौद्ध धर्म के अनुयायी एक साथ पूजा करते हैं। ऐसे में शायद यह इकलौता ऐसा मंदिर है जहां दोनों धर्मों के लोग एकसाथ एक ही मूर्ति की पूजा करते हैं। हिंदू लोग यहां पर स्थापित मूर्ति को भगवान का रूप मानकर पूजा करते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, यह मंदिर का संबंध महाभारत काल से है। साथ ही पांडवों द्वारा इस मंदिर की स्थापना की गई थी। वहीं बौद्ध धर्म के लोग आर्य अवलोकीतश्वर के रूप में पूजा करते हैं। बौद्धों के अनुसार, पद्मसंभव ने 8वीं शताब्दी में यहां आकर पूजा की थी। ऐसे में दोनों धर्मों के लोगों की आस्था इस मंदिर से जुड़ी है। इस पावन मंदिर को कैलाश और मानसरोवर के बाद सबसे पवित्र तीर्थ कहा जाता है।

रहस्यों से भरा मंदिर

स्थानीय लोगों के अनुसार, यह प्राचीन मंदिर कई रहस्यों से भरा है, जिनसे आजकल पर्दा नहीं उठ पाया है। इस मंदिर का एक किस्सा कुल्लू के राजा से जुड़ा है। कहते हैं कि उस समय वह राजा भगवान की मूर्ति को साथ लेकर जाना चाहते थे। मगर जब वे मूर्ति उठाने लगे तो वे उसे उठा ही नहीं पाए थे। संगमरमर से तैयार भगवान शिव की मूर्ति की दाईं टांग पर एक निशान बना हुआ है। इसके बारे में कहा जाता है कि यह निशान कुल्लू के एक सैनिक की तलवार से पड़ा था।

 

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neetu