क्या क्रैम्प्स के कारण रोना है ओवर-रिएक्शन ? लेटेस्ट रिसर्च में पता चली पीरियड के दर्द की असली कहानी
punjabkesari.in Friday, Sep 19, 2025 - 11:15 AM (IST)

नारी डेस्क: हर इंसान अलग होता है, उसका संघर्ष अलग होता है, उसके भावनाएं अलग होती हैं और उसकी चुनौतियां अलग होती हैं। अगर महिलाओं की बात करें तो पीरियड्स तो हर किसी को आते हैं, लेकिन इसका अनुभव अलग- अलग होता है। कुछ लड़कियों को पीरियड क्रैम्प्स (दर्द) बाकी लड़कियों की तुलना में बहुत ज्यादा महसूस होते हैं। कई वैज्ञानिक शोधों में यह पाया गया है कि पीरियड पेन का अनुभव हर महिला में अलग-अलग स्तर पर होता है।

रिसर्च क्या कहती है?
मेडिकल स्टडीज़ के मुताबिक लगभग 60-70% महिलाएं पीरियड्स के दौरान दर्द (dysmenorrhea) का अनुभव करती हैं। इनमें से लगभग 10-15% महिलाओं को इतना तेज दर्द होता है कि उनकी पढ़ाई, नौकरी या रोज़मर्रा का काम प्रभावित हो जाता है। क्रैम्प्स की तीव्रता इस बात पर निर्भर करती है कि गर्भाशय की परत (endometrium) से prostaglandins नामक केमिकल कितना रिलीज़ हो रहा है। जितनी ज्यादा इसकी मात्रा होगी, उतना ही ज्यादा गर्भाशय सिकुड़ेगा और दर्द बढ़ेगा।
दर्द का यह है कारण
कुछ महिलाओं में हार्मोनल असंतुलन, पीसीओएस, एंडोमेट्रियोसिस या तनाव की वजह से भी दर्द सामान्य से कहीं ज्यादा हो सकता है। एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि रिसर्च के अनुसारकम उम्र में शुरू हुए पीरियड्स और लंबा menstrual cycle होने पर क्रैम्प्स ज्यादा देखने को मिलते हैं। हर लड़की का शरीर अलग होता है। कुछ को हल्का दर्द होता है, कुछ को बिल्कुल भी नहीं होता, लेकिन कुछ के लिए यह इतना तीव्र हो सकता है कि उन्हें दवा लेनी पड़ती है। यानी पीरियड क्रैम्प्स "समान" नहीं बल्कि "व्यक्तिगत" अनुभव है।

ये है सच्चाई
नई रिसर्च कहती है कि हर महिला का शरीर अलग तरह से बायोकेमिकल रिएक्शन करता है, किसी में प्रॉस्टाग्लैंडिन्स ज्यादा बनते हैं, किसी में 12-HETE और PAF जैसे अणु हावी हो जाते हैं. यही वजह है कि एक ही दवा से किसी को आराम मिलता है और किसी को बिल्कुल फायदा नहीं होता। रिसर्च ये साफ करती है कि यह "नखरे" या "ओवर-रिएक्शन" नहीं है, बल्कि सच्चाई यह है कि कुछ महिलाओं को पीरियड्स के दौरान सच में बहुत ज्यादा दर्द होता है।