धनतेरस पर की जाती है यमराज की पूजा, क्यों जलाना जरूरी यम दीपक?

punjabkesari.in Tuesday, Nov 02, 2021 - 12:16 PM (IST)

हर किसी को दिवाली के पावन दिन का बेसब्री से इंतजार रहता है। इसकी पर्व की शुरुआत धनतेरस की जाती है। इस दिन सोना-चांदी आदि चीजें खरीदने के साथ देवी-देवताओं की पूजा करने का भी विधान है। इसके साथ ही आज की शाम खासतौर पर घर के मुख्य द्वार पर आटे का चौमुखी दीपक जलाने का महत्व है। मान्यता है कि दीपक जलाने से मृत्यु के देवता यमराज प्रसन्न होते हैं। ऐसे में वे उस घर को अकाल मृत्यु के भय से मुक्त रखते हैं।

ऐसे जलाएं यम का दीपक

इस शुभ दिन पर आटे का चौमुखी दीपक जलाकर उसमें चार बत्तियां डालकर पूजा करें। उसके बाद घर की दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके ‘मृत्युनां दण्डपाशाभ्यां कालेन श्यामया सह। त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम्’ मंत्र का जप करते हुए यमराज जी की पूजा करें।

धनतेरस पर यम का दीपक जलाने से जुड़ी पौराणिक कथा

एक समय की बात है मृत्यु के देवता यमराज ने अपने दूतों से पूछा कि किसी के प्राण हरते समय तुम्हें उनपर कभी दया आई है? उस समय यमदूतों ने संकोच में आकर इस बात से इंकार कर दिया। तब यम जी ने उन्हें दोबारा कहा कि डरो मत सच-सच बताओ। तब यमदूतों ने कहा कि एक समय उनका दिल किसी के प्राण लेते समय सच में डर गया था।

 

उस समय दूत ने कहा कि एक बार हम हंस नामक राजा शिकार पर गया था। वह वहां से भटककर दूसरे राज्य की सीमा पर पहुंच गया था। उस राज्य के राजा हिमा ने राजा हंस का बहुत ही आदत-सत्कार किया। उसी दिन शासक हिमा की रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। उस दौरान ज्योतिषों द्व्रारा बताया गया बालक अपनी शादी के चौथे दिन ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। तब राजा ने पुत्र की सुरक्षा के लिए उसे यमुना के तट पर एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रहने को कहा। साथ ही अपने सैनिकों को आदेश दिया गया कि राजकुमार के पास किसी स्त्री की छाया तक न पहुंचे।

परंतु विधि के विधान के आगे कोई क्या कर सकता है। एक दिन राजा हंस की युवा पुत्री यमुना के तट पर गई। तब उसने उस ब्रह्मचारी राजकुमार से गंधर्व विवाह कर लिया। मगर विवाह के ठीक चौथे दिन उस राजकुमार मृत्यु हो गई। उस समय दूतों ने यमराज जी से कहा कि महाराज हमने ऐसी सुंदर जोड़ी कभी नहीं देखी थी। साथ ही उस वक्त महिला का विलाप देखकर हमारी आंखें भी आंसू से भर गई थी। तब दूतों ने यम जी से पूछा कि क्या हे महाराज क्या अकाल मृत्यु से बचने का कोई मार्ग है? उस समय यमराज जी ने कहा कि धनतेरस के दिन जो भी हमारा (यमराज) विधिवत पूजन करके दीपदान करेगा। शाम को घर के प्रवेश द्वार पर यम का दीपक जलाएगा व अकाल मृत्यु से भय से मुक्त हो जाएगा। ऐसे में जिस घर में यह दीपक जलाया जाएगा वहां पर अकाल मृत्यु का वास कभी नहीं होगा। इस घटना के बाद से धनतेरस के शुभ दिन पर भगवान धनवंतरी की पूजा के साथ यम का दीपक जलाने व दीपदान की प्रथा शुरु हो गई।

अन्य कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, राजा हिम के बेटे को श्राप था कि शादी के चौथे दिन ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। जब राजकुमार की पत्नी को इसकी जानकारी हुई तो उसने एक योजना बनाई। उसने शादी के चौथे पति से दिन जगे रहने को कहा और इसे जगाए रखने के लिए वह गीत-कहानियां सुनाती रही। उसने दरवाजे पर सोने-चांदी और कई बहुमूल्य चीजें रखकर आसपास दीपक भी जला दिए। जब यम सांप के रूप में राजकुमार के प्राण लेने आया तो वह गहनों और दीपक की चमक से अंधा हो गया। सांप रूपी यम देवता गहनों के ढेर पर बैठे गीत सुनते रहें और घर में प्रवेश ना कर सके। सुबह यमराज राजकुमार की जान लिए बिना ही चले गए क्योंकि उनके मृत्यु की घड़ी बीत चुकी थी।

Content Writer

neetu