अजमेर शरीफ दरगाह से जुड़ी कुछ खास बातें, जरूर जानें

punjabkesari.in Friday, Apr 28, 2017 - 06:13 PM (IST)

पंजाब केसरी (ट्रैवलिंग) : लोग घूमने के लिए अलग-अलग जगह पर जाना पसंद करते हैं। ऐसे ही एक जगह है अजमेर शरीफ। राजस्थान में बसी इस दरगाह की बहुत मान्यता है। यहां ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की कब्र है जो सन् 1192 में सुल्तान साबुद्दीन के साथ भारत आए और अजमेर में ही बस गए। उनके पास कई चमत्कारी शक्तियां थी जिस वजह से उनके नाम पर आज भी दरगाह में लोग दूर-दूर से आते है। यहां आने वाले लोगों की हर मुराद पूरी होती है। ख्वाजा साहिब की यह दरगाह देखने में भी बहुत सुंदर है। आइए जानिए इसकी खूबसूरती के बारे में जिसको देखे बिना रह नहीं पाएंगे।


निजाम गेट

अजमेर शहर ऊंची-ऊंची पहाड़ियों के बीच बसा है और यह दरगाह इस शहर के मध्य में स्थित है। ख्वाजा पीर की इस दरगाह के प्रवेश में चारों तरफ दरवाजें  हैं जिनमें से सबसे ज्यादा सुंदर और आकर्षक दरवाजा मुख्य बाजार की और है जो निजाम गेट के नाम से मशहूर है। यह दरवाजा साल 1912 में बनना शुरू हुआ और इसे बनने में 3 साल लगे। इसकी ऊंचाई 70 फुट और चौड़ाई 24 फुट है।

दरवाजा नक्कारखाना
यह दरवाजा काफी पुराने तरीके से बना है और इसके ऊपर शाही जमाने का नक्कारखाना है। इस दरवाजे को शाहजहां  ने साल 1047 में बनवाया था। इसी कारण यह नक्करखाना शाहजहानी के नाम से प्रसिद्ध है।

चार यार की मजार
जामा मस्जिद के दक्षिण दीवार के साथ ही एक छोटा-सा दरवाजा है जो पश्चिम की ओर खुलता है। इस दरवाजे के बाहर काफी बड़ा कब्रिस्तान है जहां बड़े-बड़े आलिमों, फाजिलों और सूफियों-फकीरों की मजार(कब्र) है। इस कब्रिस्तान में उन चार बुजुर्गों की भी कब्रें हैं जो हजूर गरीब नवाज के साथ आए थे जिस कारण इसे चार यार भी कहते हैं। यहां हर साल मेला लगता है जहां लोग दूर-दूर से आते हैं।


अकबरी मस्जिद
अकबरी मस्जिद अकबर के जमाने की यादगार है। शाहजहां सलीमा के जन्म पर बादशाह अकबर के साथ अजमेर आए थे और उन्होंने उस समय इस मस्जिद के निर्माण का आदेश दिया था।
 
सेहन का चिराग
  बुलंद दरवाजे के आगे बढऩे पर सामने एक गुम्बद की तरह सुंदर सी छतरी है। इसमें एक बहुत पुराने प्रकार का पीतल का चिराग रखा है। इसको सेहन का चिराग कहते हैं।


बड़ी देग 
 बादशाह अकबर ने यह प्रतिज्ञा की थी कि चितौड़गढ़ से युद्ध जीतने के बाद वे अजमेर दरगाह में एक बड़ी देग दान करेंगे। इस देग में एक बार में सवा सौ मन चावल पक सकते हैं।

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