स्ट्रीट लाइट में बैठकर पढ़ती थी किरण, ICSE की परीक्षा में लिए 90%
punjabkesari.in Sunday, May 26, 2019 - 03:21 PM (IST)
कहते हैं कि कुछ कर दिखाने की लगन हो तो कैसी भी कठिनाई आपको रोक नहीं सकती। 18 साल की किरण कुमारी दास ने यह बात साबित कर दिखाई है। किरण ने घर में जगह ना होने पर पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर स्ट्रीट लाइट की रोशनी में पढ़ाई करके उसने आई.सी.एस.ई. (इंडियन सर्टीफिकेट ऑफ सैकेंडरी एग्जामिनेशन) 10वीं की परीक्षा में 90.4% अंक प्राप्त किए हैं। इतना ही नहीं, इसे अपनी मां द्वारा शादी कर लेने के मानसिक दबाव का भी रोज सामना करना पड़ता था।
स्कूल में सफाई कर्मचारी है पिता
जिस स्कूल में वह पढ़ती है उसमें ही उसके पिता सफाई कर्मी हैं। स्कूल परिसर में एक कमरे के क्वार्टर में उनका 5 लोगों का परिवार रहता है। ऐसे में उसे पढ़ाई के लिए जगह तक नसीब नहीं थी। उसी कमरे में उसकी मां खाना पकाती है और कमरे में टी.वी. का शोर भी रहता है।
स्ट्रीट लाइट में पढ़कर हासिल किया मुकाम
तब उसने स्कूल परिसर में एक पीपल के पेड़ को चुना और उसके नीचे स्ट्रीट लाइट की रोशनी में अपनी पढ़ाई जारी रखी। पश्चिम बंगाल के सियालदह में सेंट पॉल्स मिशन स्कूल की किरण बताती है, 'वहीं मच्छरों ने अलावा और कोई समस्या नहीं थी। कोई मुझे डिस्टर्ब नहीं करता था, वहां पूरी शांति थी'
अच्छी एथलीट भी है किरण
किरण को वहीं पढ़ाई हुए स्कूल के प्रिसिपल संचिता बिसवास ने भी देखा है। वह बताते हैं कि मैंने उसे स्ट्रीट लैंप की रोशनी में पढ़ाई करते देखा है। उसके पिता को मिले सर्विस क्वार्टर में बोर्ड परीक्षा की तैयारी करने के लिए जगह नहीं थी लेकिन उसने बगैर कोई शिकायत किए मेहनत जारी रखी। वह बेहद विनम्र है और अच्छी एथलीट और क्लॉस मॉनिटर भी रही हैं। किरण को कोई शिकायत नहीं है बल्कि वह इंगलिश मीडियम स्कूल में पढ़ने का अवसर मिलने पर आभारी है।
पिता ने हमेशा किया प्रोत्साहित
किरण ने कहा, 'मेरे पिताजी मुझे और भाई को पहले यहां लाए थे। तब मां झारखंड में गांव में ही रहती थी। पहले हम स्कूल से दूर खारदा में रहते थे लेकिन पिताजी ने सुनिश्चित किया कि वह हमें इस स्कूल में दाखिल करवाएं, ताकि हम अंग्रेजी मीडियम में पढ़ सकें।' स्कूल के स्टाफ ने भी बच्चों की मदद की और बच्चों की फीस भी माफ कर दी गई। किरण को किताबें भी स्कूल से ही मिलती हैं।
मां की सोच से संघर्ष
हालांकि किरण को सबसे बड़ी संघर्ष अपनी मां की सोच से करना पड़ा, जो अभी भी जारी है। वह कहती हैं, '90% अंक प्राप्त करने के बाद भी मां यही महसूस करती हैं कि एक दिन तो लड़कियों की शादी ही करनी पड़ती है लेकिन मैंने उनसे कह दिया है कि मेरा विश्वास है कि लड़कियों को भी सामान अवसर मिलना चाहिए'