Coronavirus: एसिम्टोमैटिक मरीजों की वजह से बढ़ रहा कोरोना का खतरा

punjabkesari.in Thursday, May 14, 2020 - 09:36 AM (IST)

दुनियाभर में फैल चुके कोरोना वायरस ने भारत में अपने पैर पसार लिए हैं। भारत में कोरोना के मामले बढ़कर 7 हजार से अधिक हो चुके हैं। मगर, सवाल यह है कि लंबे समय से लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के बावजूद भी कोरोना के मामले क्यों बढ़ रहे हैं। दरअसल, पिछले दिनों एसिम्टोमैटिक मरीजों के काफी मामले देखने को मिले हैं, जिसकी वजह से डॉक्टरों व वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ गई है। इसकी वजह से कोरोना का खतरा और भी बढ़ गया है।

कौन होते हैं एसिम्टोमैटिक मरीज?

एसिम्टोमैटिक मरीज वो होते हैं, जिनमें कोरोना के शुरूआती लक्षण जैसे खांसी, जुकाम और बुखार दिखाई नहीं देते। ऐसे में मरीजों को पता ही नहीं होता कि वो पॉजिटिव है, जिससे वो अधिक संक्रमण फैला सकते हैं। चिकित्सकों की मानें तो एसिम्टोमैटिक मरीज कोरोना वायरस की चेन को मजबूत कर रहे हैं। ऐसे में इस स्थिति को देखते हुए भारत अपनी जांच के पैटर्न को बदलने की सोच रहा है।

स्वास्थ्य मंत्रालय जाहिर कर चुका है चिंता

स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि कोविड-19 के 80% मरीजों में कोई लक्षण नहीं दिख रहे हैं या फिर बहुत ही सामान्य लक्षण दिखाई दे रहे हैं। एसिम्टोमैटिक मरीज संक्रमण को दूसरों में आसानी से फैला सकते हैं, जो चिंता का विषय है।

क्यों नहीं दिख रहे लक्षण?

दरअसल कई लोगों की इम्यूनिटी मजबूत होती है। ऐसे में जब उन्हें वायरस का संक्रमण होता है तो उनके शरीर की इम्यूनिटी शरीर को प्रभावित नहीं होने देती, जिसकी वजह से इंसान को सामान्य लगता है और लक्षण भी सामने नहीं आते लेकिन यह काफी खतरनाक बात हो सकती है।

एक्सपर्ट ने क्या कहा?

एक्सपर्ट के मुताबिक, आजकल एसिम्टोमैटिक मामले ज्यादा आ रहे हैं। ऐसे लोगों की पहचान जांच के बाद ही हो सकती है। वहीं ऐसे लोगों में कोविड-19 से मौत की संभावना भी अधिक रहती है।

किन लोगों को होती है अधिक समस्या

जो डायबिटीज, हार्ट प्रॉब्लम, ऑटो इम्यून डिसीज, अस्थमा या किसी अन्य बीमारी शिकार है, उन्हें इसका अधिक खतरा रहता है। ऐसे में सेल्फ आइसोलेशन और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे नियमों को कड़ाई से पालन करने की जरूरत है।

Content Writer

Anjali Rajput