इतिहास फिर वापिस लौट आया, एक बीमारी जिसने कब्रिस्तान बना दी थी पूरी दुनिया

punjabkesari.in Wednesday, Apr 28, 2021 - 05:36 PM (IST)

पूरी दुनिया इस समय कोरोना महामारी के कहर से जूझ रही है। भारत में दिनों-दिन खराब होते हालातों ने सबकी चिंता बढ़ा दी है। दूसरी लहर को पहले से ज्यादा खतरनाक बताया जा रहा है जो 20 से 40 साल की उम्र के बीच लोगों को अपना शिकार बना रही है। दिल्ली में ऑक्सीजन से जुझते लोग अपनी जान गंवा रहे हैं हालात ऐसे हैं कि अस्पताल के अस्पताल भरे पड़े हैं। मरीजों को अस्पताल में बेड नहीं मिल रहे हैं और ना ही ऑक्सीजन... ऐसे दिन की कल्पना किसी ने नहीं की थी। ऐसा कहर दुनिया पहले भी देख चुकी है। एक बार फिर से 100 साल पहले जो दुनिया ने देखा था वह फिर से सामने आ खड़ा हुआ है। मानो इतिहास अपने आप को फिर से दोहरा रहा हो...

जी हां, कोरोना की तरह करीब 100 साल पहले सन 1918 में फैली स्पेनिश फ्लू ने भी भयंकर तबाही मचाई थी। दुनियाभर में लाशों के ढेर लग गए थे। मानो दुनिया कब्रिस्तान ही बन गई हो। करोड़ों लोगों ने अपनी जान गंवा था। भारत में भी करोड़ों लोग इस बीमारी के चलते मौत की नींद सो गए।  कहा जाता है कि उस वक्त गंगा के पानी में लाशें तैरती दिखाई देती थीं... दाह संस्कार के लिए लकड़ियां कम  पड़ गई थीं.. आज फिर से वहीं मंजर आंखों के सामने आ गया है।

 

जनवरी 1918 में आए इस फ्लू ने 29 मई 1918 को भारत में दस्तक दिया था। उस समय पहले विश्व युद्ध से लौट रहे भारतीय सैनिकों का जहाज मुंबई बंदरगाह पर लगा था यह जहाज मुंबई के बंदरगाह पर करीब 48 घंटे तक फंसा रहा। 10 जून 1918 को बंदरगाह पर तैनात 7 सिपाहियों को जुकाम की वजह से अस्पताल में भर्ती करवाया गया। रेल यात्रा के दौरान यहीं से बीमारी मुंबई से देश भर में फैल गई थी।

खबरों के मुताबिक, इस बीमारी के चलते दुनिया भर में करीब 5 करोड़ लोगों की मौत हुई जबकि अकेले भारत में ही 1.20 करोड़ लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। उस समय भारत में अकाल की स्थिति थी लोगों का इम्यून सिस्टम बेहद कमजोर हो चुका था।  भारत की आर्थिक स्थिति शून्य से कहीं नीचे माइनस 10.8 फीसदी तक जा चुकी थी। बीमारी की शुरुआत में दुनियाभर की सरकारों ने इसे छिपाया था क्योंकि उन्हें डर था कि इससे मोर्चे पर लड़ने वाले सैनिकों का मनोबल गिर जाएगा। इस बीमारी का नाम स्पेनिश फ्लू इसलिए पड़ा था क्योंकि सबसे पहले इस वायरस के अस्तित्व को सबसे पहले स्पेन ने स्वीकारा था। यह बीमारी व्यक्ति के फेफड़ों पर ही अटैक करती थी। असहनीय खांसी, बदन दर्द व कई बार नाक व कान से खून निकलने लगता था। भारत में मार्च 1920 तक इस पर कंट्रोल पाना संभव हुआ। दुनियाभर में दिसंबर 1920 में इसका खात्मा हुआ।

आज से फिर से देश में वही हालात है ऐसे में खुद को सेफ रखने के लिए कोरोना गाइडलाइन्स का पालन करें। घर पर रहें, सुरक्षित रहें। और मास्क जरूर पहने। अपने खानपान का भी ख्याल रखें। अगर आप पहले से ही किसी बीमारी से पीड़ित है तो खुद का ज्यादा ध्यान रखें।

Content Writer

Sunita Rajput