नारी शक्ति का बेहतर उदाहरण है Ima Keithel बाजार, इस मार्केट में चलता है महिलाओं का दबदबा

punjabkesari.in Tuesday, Apr 25, 2023 - 11:08 AM (IST)

भारत में ऐसी कई अनुठी चीजें हैं जिनके बारे में बहुत से कम लोगों को जानकारी है। ऐसी ही एक चीज के बारे में आज आपको बताएंगे। मणिपुर का ईमा कैथल बाजार भी इसी चीज का उदाहरण है। यह बाजार नारी शक्ति की एक बेहतरीन मिसाल भी पेश करता है। इस बाजार की सारी दुकानदार केवल महिलाएं ही हैं। पारंपरिक वेशभूषा में हजारों महिलाएं अपनी दुकानें यहां पर सजाकर बैठती हैं। इस बाजार में करीबन 5000 महिलाएं अपनी दुकानदारी करती हैं। इसलिए इस बाजार को एशिया का सबसे बड़ा महिला बाजार भी कहते हैं। इन दुकानों में मछलियों, सब्जियां, मसालें, फल, स्थानीय चाट जैसी कई चीजें मिलती हैं। तो चलिए आज आपको बताते हैं कि आखिर इस बाजार को महिलाएं क्यों चलाती हैं...

नारी शक्ति का एक बहुत अच्छा उदाहरण है 

यह बाजार सुंदर होने के साथ-साथ बहुत ही खास भी है। पौराणिक प्रथाओं की मानें तो यहां पर केवल शादीशुदा महिलाएं ही आधिकारिक तौर पर बाजार में व्यापार कर सकती हैं। इसके अलावा इस बाजार के खास होने के कई सारे कारण हैं। 16वीं सदी में इमा बाजार की नींव रखी गई थी। उस दौरान मणिपुर में लुल्लुप काबा का राज था। ये एक जबरन बंधुआ मजदूरी को बढ़ावा देनी वाली प्रथा थी। इस सिस्टम के अंतर्गत लोगों से जबरदस्ती भी काम करवाया जाता था। मेइती पुरुषों को कुछ समय तक के लिए सेना और अन्य नागरिक परियोजनाओं में काम करना पड़ता था और उन्हें उनके घर से भी दूर भेज दिया जाता था। ऐसे में पुरुषों के घर से दूर रहने के कारण सारी जिम्मेदारियां मेइती औरतों के कंधों पर आती थी। धान की खेती और उसकी उपज की बिक्री के लिए पीछे छूट गई इन महिलाओं ने कभी भी हार नहीं मानी और जबरन मजदूरी प्रथा से उन्होंने न तो अपने मर्दों को कमजोर पड़ने दिया और न ही खुद हिम्मत हारी। ऐसे ही ईमा कैथल बाजार की शुरुआत हुई। उस दौरान महिलाओं ने खुद को आत्मनिर्भर भी बनाया और अपने परिवार व समाज को भी मजबूत बनाया। इन महिलाओं  ने अपने दम पर प्रबंधन का तरीका सीखा और बाजार शुरु कर दिया। आज यह बाजार पूरे एशिया के सबसे बड़े महिलाओं के बाजार के रुप में जाना जाता है। 

PunjabKesari

महिलाओं ने दी थी ब्रिटिश हुकूमत को मात 

जबरदस्ती बंधवा मजदूरी वाली लुल्लप-काबा प्रथा भारत में अंग्रेजों के आ जाने के बाद भी चलती रही। उस समय अंग्रेजों का अत्याचार भी चरम पर था और उन्होंने इस प्रथा का फायदा उठाते हुए ब्रिटिश सरकार की नीतियों ने इमा बाजार के कामकाज में भी दखलअंदाजी देनी शुरु कर दी। हालांकि अंग्रेजों को इसके लिए बाजार चलाने वाली महिलाओं के कड़े प्रतिरोध को भी सहना पड़ा। जो अंग्रेज भारत के अलग-अलग देशों में लोगों को डरा रहे थे उन्हें सबक सिखाने के लिए असम की महिलाओं से कड़े कदम उठाए। अंग्रेजों ने ईमा कैथल की इमारतों को विदेशियों से बचाने की काफी कोशिश की परंतु ईमा बाजार की महिलाओं ने इसका विरोध करते हुए ब्रिटिश हुकूमत को अच्छी टक्कर दी। 

औरतों की जंग का किया आगाज 

ब्रिटिश हुकूमत के लोगों का ईमा कैथल की औरतों ने पूरे साहस के साथ मुकाबला किया। उन्होंने आंदोलन नूपी लेन यानी की औरतों की जंग का आगाज किया। इस आंदोलन के जरिए अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ चक्काजाम, विरोध प्रदर्शन और जुलूस भी शुरु किया। यह आंदोलन दूसरे विश्व युद्ध तक चलता रहा। हिम्मत और कड़े हौसलों के साथ ईमा बाजार की महिलाओं ने दुनिया की मातृशक्ति की ताकत का एहसास अच्छे से करवाया। देश की आजादी के बाद यह बाजार सामाजिक विषयों पर चर्चा का विषय बन गया। 

PunjabKesari

औरतों की भागीदारी देखते हुए पड़ा ईमा नाम 

ईमा बाजार औरतों ने शुरु किया था ऐसे में इसकी नाम पहचान और इसमें औरतों की भागीदारी देखते हुए इसे ईमा कैथल ना दिया गया। मणिपुरी भाषा में ईमा का मतलब होता है मां और कैथल का मतलब होता है बाजार ऐसे में इस बाजार का पूरा अर्थ हुआ मां का बाजार। औरतों के द्वारा शुरु किया गया ये बाजार आज भी पूरी दुनिया में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत की एक अलग पहचान बना हुआ है। इस बाजार की चहल-पहल कई लोगों को यहां पर आने के लिए मजबूर कर देती है। 

PunjabKesari


 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

palak

Related News

static