आंखों की रोशनी खोने पर भी नहीं हारी हिम्मत, बनी देश की पहली ब्लाइंड महिला IAS

punjabkesari.in Monday, Oct 21, 2019 - 11:59 AM (IST)

खुद पर हौंसला होने के साथ जब इरादे मजबूत होते है तो कोई भी मुश्किल आपको अपनी मंजिल पाने से रोक नहीं सकती हैं। इस बात की उदाहरण है महाराष्ट्र की रहने वाली प्रांजल पाटिल। प्रांजल ने 6 साल की उम्र में अपनी दोनों आंखों की रोशनी खो दी लेकिन अपने सपने को कभी भी खत्म होने नहीं दिया। इन्हीं सपनों को पूरा कर उन्होंने अब देश की पहली दृष्टिबाधित आईएएस अफसर बनने का गौरव हासिल किया हैं। 

 

महाराष्ट्र के उल्लासनगर की रहने वाली प्रांजल ने 14 अक्टूबर को तिरुवनंतपुरम में उप-कलेक्टर का कार्यभार संभाला हैं। प्रांजल ने अपने पहले ही प्रयास में ही यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा में 773 वां रैंक हासिल किया था। 

 


6 साल की उम्र में खोई आंखों की रोशनी

30 साल की प्रांजल की आंखों की रोशनी बचपन से ही काफी कमजोर थी लेकिन 6 साल की उम्र में उन्होंने अपनी आंखों की रोशनी पूरी तरह से खो दी। जिंदगी में आ रहे इन बदलों से वह डर कर हारी नहीं बल्कि आगे बढ़ती रही। उनके पिता एलजी पाटिल सरकारी कर्मचारी व माता ज्योति हाउस वाइफ है। मुंबई के दादर स्थित कमला मेहता स्कूल से उन्होंने 10वीं तक ब्रेल लिपि के माध्यम से अपनी पढ़ाई पूरी की। उसके बाद चंदाबाई कॉलेज से 12 वीं की परीक्षा दी। बीए की पढ़ाई के लिए उन्होंने मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज को ज्वाइंन किया। इसी दौरान उन्होंने अपनी एक सहेली के साथ यूपीएससी के बारे में एक लेख पढ़ा व उसके बारे में जानकारी हासिल की। इसके बाद उन्होंने दिल्ली के जेएनयू से एमए की। 

 

कभी भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिएः प्रांजल पाटिल 

उप-कलेक्टर के पद को संभालने के बाद प्रांजल ने सभी को कभी भी पराजित महसूस न करने व हिम्मत न हारने की सीख दी। जब हम लगातार प्रयास करते है तो हमें एक दिन कामयाबी जरुर मिलती है। जीवन में हर रास्ते में थोड़ी बहुत बाधाएं आती है लेकिन कभी भी निराश होकर हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। बस मन लगाकर अपनी मंजिल की ओर बढ़ना चाहिए।  

 

नेत्रहीन बोल कर रेलवे ने नौकरी देने से किया था मना 

इंटरनेशनल रिलेशन में पीएचडी स्कॉलर्स प्रांजल आंखों की रोशनी न होने के कारण चाहे दुनिया के रंगों को देख नहीं सकती लेकिन उन्हें महसूस जरुर कर सकती हैं। आंखों की रोशनी जाने के बाद वह अपनी मां ज्योति पाटिल की आंखों से ही पूरी दुनिया देख रही हैं। 2015 में यूपीएससी की परीक्षा में 773 वां रैंक आने के बाद भी रेलवे मंत्रालय ने सौ फीसदी नेत्रहीनता होने के कारण नौकरी देने से इंकार कर दिया था। उसके बाद ही उन्होंने तय किया कि वह हार नहीं मानेगी व अपने सपनों को हासिल करके रहेगी। 2016 में दोबारा परीक्षा दी व 773 वां रैंक हासिल किया। अपनी रैंकिंग में सुधार करने के लिए उन्होंने दोबारा परीक्षा दी और इस बार 124 वां स्थान हासिल किया। इसके बाद ट्रेनिंग के दौरान उन्हें एर्नाकुलम का सहायक कलेक्टर नियुक्त किया गया।
 

Content Writer

khushboo aggarwal