कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के सम्मान में गूगल ने बनाया डूडल, जानिए कौन थी पहली भारतीय सत्याग्रही महिला

punjabkesari.in Monday, Aug 16, 2021 - 10:49 AM (IST)

"खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।" आपने झांसी की रानी की वीरता का बखान करने वाली इस कविता को बहुत बार पढ़ा व सुना होगा। इस वीरतापूर्ण कविता को लिखने वाली कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान हैं। वे भारत की अग्रणी लेखिका और स्वतंत्रता सेनानी भी रही। आज उनकी 117 वीं जयंती है। ऐसे में उन्हें सम्मानित करने के लिए गूगल ने उनके लिए डूडल समर्पित किया है। इनके काम को साहित्य के पुरुष-प्रधान युग के दौरान राष्ट्रीय प्रमुखता मिली। चलिए जानते हैं इसके बारे में...

16 अगस्त 1904 को जन्मीं लेखिका सुभद्रा कुमारी चौहान

लेखिका सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म 16 अगस्त 1904 को उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद के समीप निहालपुर में हुआ था। इन्हें बचपन से ही अपने परिवार से  राष्ट्रवादी विचारों की प्रेरणा मिली। इन्हें बचपन से ही कविताओं को लिखने का शौक था। उन्होंने अपीन पहली कविता 9 साल की उम्र में लिखी थी। वे घोड़ा गाड़ी में बैठकर रोज स्कूल जाते समय भी लगातार कविता लिखती रहती थीं। लेखिका के कुल 2 कविता संग्रह- मुकुल व त्रिधाराऔर 3 कहानी संग्रह मोती, उन्मादिनी और सीधे साधे चित्र प्रकाशित हुए थे। इनकी रचनाओं में सबसे अधिक 'झांसी की रानी' कविता मशहूर है।

गूगल ने डूडल बनाकर किया सम्मानित

देश की लेखिका व स्वतंत्रता सेनानी रह चुकी सुभद्रा कुमारी चौहान की 117 वीं जयंती के अवसर पर गूगल ने उनके सम्मान में डूडल तैयार किया है। इनके काम को साहित्य के पुरुष-प्रधान युग के दौरान राष्ट्रीय प्रमुखता मिली। इसमें एक साड़ी पहने और कागज व कलम के साथ लेखिका को दिखाया गया है। इसके साथ ही इनके पीछे रानी लक्ष्मीबाई और स्वतंत्रता आंदोलन की झलक दिखाई दे रही है। बता दें, इस डूडल को न्यूजीलैंड की गेस्ट आर्टिस्ट प्रभा माल्या द्वारा बनाया गया है।

हिंदी साहित्य में सबसे अधिक पढ़ी गई “झांसी की रानी”

लेखिका की राष्ट्रवादी कविता “झांसी की रानी” व्यापक रूप से हिंदी साहित्य में सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली कविताओं में से एक है। इसने लोगों के मन में राष्ट्रीय की भावना जागृत की।


महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली पहली महिला

सुभद्रा कुमारी चौहान सिर्फ लेखिका ही नहीं बल्कि एक स्वतंत्रता सेनानी की तरह भी समाज के आगे दिखाई दी। कहते हैं कि उन्होंने सिर्फ अपने मन की भावनाओं व जज्बे को ही कागज पर नहीं लिखा बल्कि उसे असल जिंदगी में महसूस किया भी है। उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग भी लिया था। बता दें, साथ ही वे इस आंदोलन में हिस्सा लेने वाली पहली भारतीय महिला थी। इन्होंने देश को आजाद करने में एक अहम भूमिका अदा की। इसके कारण इन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। इसके साथ ही अपनी रचनाओं द्वारा इन्होंने देशवासियों को भी आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरणा दी। 15 फरवरी 1948 को सुभद्रा कुमारी चौहान इस देश को अलविदा कह गई। लेखिका ने अपनी मृत्यु के बारे में एक बार कहा था, कि "मेरे मन में तो मरने के बाद भी धरती छोड़ने की कल्पना नहीं है। मैं चाहती हूं, मेरी एक समाधि हो, जिसके चारों तरफ मेला लगा हो, बच्चे खेल रहें हो, स्त्रियां गा रही हो और खूब शोर हो रहा हो।"

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neetu