कम उम्र में लड़कियों को आ रहे हैं पीरियड्स, स्कूल से लेकर घर में ऐसे करें उन्हें तैयार

punjabkesari.in Monday, Feb 12, 2024 - 12:04 PM (IST)

सार्वजनिक स्थानों पर मासिक-धर्म (पीरियड्स) का प्रबंधन करना कभी-कभी चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन जरा कल्पना करें कि आठ साल की बच्ची को जब स्कूल में इससे निपटना पड़े तो क्या होगा। आपको कक्षा जारी रहने के दौरान अपना ‘पैड' बदलने की जरूरत पड़ सकती है और अपने दोस्तों को यह समझाना पड़ सकता है कि आप स्विमिंग कार्निवल में क्यों नहीं जा रही हैं। आपको यह डर सता सकता है कि आपकी पोशाक से बाहर खून आ जाएगा क्योंकि प्राथमिक कक्षाओं के शौचालयों में ‘सैनिटरी पैड' नहीं रखे होते हैं।

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लड़कियों को बहुत जल्दी आ रहे हैं पीरियड्स

आमतौर पर लड़कियों के पहली बार मासिक-धर्म की प्रक्रिया से गुजरने की औसत आयु लगभग 13 वर्ष है। लेकिन लगभग 12 प्रतिशत लड़कियों को आठ से 11 वर्ष की आयु के बीच पहली बार इसका सामना करना पड़ जाता है। शोधार्थी इसे ‘शुरूआती मासिक- धर्म' कहते हैं। छात्राओं के एक हिस्से को उनके स्कूल के तीसरे वर्ष या दूसरे वर्ष में पहली बार मासिक-धर्म का सामना करना पड़ता है, लेकिन प्राथमिक विद्यालय की छात्राओं को आधिकारिक तौर पर पांचवें साल और छठे साल तक (जब वे 10 और 12 वर्ष के बीच की होती हैं) यौवनारंभ के बारे में नहीं पढ़ाया जाता है। यह शोध वर्तमान अवधि की शिक्षा और शुरूआती मासिक-धर्म के लिए क्या सहायता उपलब्ध है, इस बारे में पता लगाता है। यह दर्शाता है कि स्कूल मानव विकास के इस आवश्यक पहलू के बारे में ज्ञान के द्वारपाल के रूप में क्या भूमिका निभा सकते हैं।

 

 शर्मिंदगी महसूस करती हैं लड़कियां

मासिक-धर्म को लेकर शर्मिंदगी दुनिया के कई हिस्सों में सदियों से मौजूद है। शोधार्थियों ने उल्लेख किया है कि कैसे लड़कियों को मासिक-धर्म के बारे में बात नहीं करने के लिए सिखाया जाता है और यदि वे ऐसा करती हैं, तो यह अक्सर (दर्द और परेशानी पर ध्यान देने के साथ) नकारात्मक रूप में होता है। वर्ष 2021 के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 10 से 18 वर्ष की आयु की 659 ऑस्ट्रेलियाई छात्राओं में से 29 प्रतिशत इसे लेकर चिंतित थीं कि उन्हें मासिक-धर्म के कारण स्कूल में चिढ़ाया जाएगा। मासिक-धर्म के दौरान विश्वविद्यालय की 410 छात्राओं पर 2022 के ऑस्ट्रेलियाई सर्वेक्षण में पाया गया कि केवल 16.2 प्रतिशत ने विश्वविद्यालय में अपने मासिक-धर्म के प्रबंधन में पूरी तरह से आत्मविश्वास महसूस किया। इनमें से आधी से अधिक छात्राओं का मानना था कि समाज की यह सोच है कि मासिक-धर्म वर्जित हैं (और इसलिए, ऐसी चीज नहीं है जिस बारे में आप बात करते हैं)।

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किशोरियों को देनी चाहिए पूरी जानकारी

अन्य देशों में ऐसे शैक्षणिक पाठ्यक्रमों के उदाहरण हैं जो मासिक-धर्म को अच्छा बताते हैं और यह सभी उम्र के लोगों के लिए सुलभ हैं। एक स्वीडिश पाठ्यक्रम, किशोरियों को जानकारी मुहैया करता है, प्रथम मासिक-धर्म के बारे में परामर्श देता है और इस बारे में भी बताता है कि मासिक- धर्म के बारे में वयस्क लोग बच्चों से कैसे बात करें।ऑस्ट्रेलिया के सरकारी, कैथोलिक और निजी प्राथमिक विद्यालयों में 15 कर्मचारियों से बातचीत की, उनसे उन छात्राओं के बारे में उनकी जागरूकता के बारे में पूछा, जो समय से पहले मासिक-धर्म की प्रक्रिया से गुजरीं। यह भी पूछा कि उनकी छात्राओं को मासिक-धर्म के बारे में कैसे शिक्षित किया जाता है, और उनके लिए क्या सहायता उपलब्ध है। कर्मचारियों ने बताया कि कैसे कम उम्र में मासिक-धर्म की प्रक्रिया से गुजरने वाली छात्राएं ‘अलग-थलग महसूस करती हैं'।

 

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स्कूल में ये बातें समझाने की जरूरत 

एक शिक्षक ने कहा कि आप सात और आठ साल की बच्चियों को डराना नहीं चाहते हैं। अगर यह कम उम्र में शुरू हो रहा है, तो इस बारे में पहले बात करने की जरूरत है। लेकिन यह कठिन है क्योंकि बहुत सारी लड़कियां इसे समझने के लिए पर्याप्त रूप से परिपक्व नहीं हैं। एक अन्य शिक्षक ने कहा कि स्कूल के तीसरे वर्ष में मासिक-धर्म के बारे में बात करना ‘संभवतः कुछ ज़्यादा ही है' आप बच्चियों को सदमा नहीं पहुंचाना चाहेंगे। स्कूल कर्मचारी ने यह भी बताया कि कैसे लड़कों को मासिक-धर्म के बारे में जागरूकता कक्षाओं में अनिवार्य रूप से शामिल नहीं किया गया, और कैसे पुरुष शिक्षकों को इन मुद्दों पर बात करने का अनुभव नहीं हो सकता है। उन्होंने चिंता जताई कि लड़कों को मासिक धर्म के बारे में पढ़ाने से उन्हें लड़कियों को धमकाने या चिढ़ाने का मौका मिल सकता है। यह शोध ऑस्ट्रेलियाई पाठ्यक्रम में स्कूल के तीसरे वर्ष या उससे पहले विशिष्ट मासिक-धर्म शिक्षा शुरू करने की आवश्यकता को बताता है। पाठ्यक्रम में यह समझाने की आवश्यकता है कि मासिक-धर्म क्या है, यह क्यों होता है, इसे कैसे प्रबंधित किया जा सकता है और यह उनकी सहेलियों को कैसे शुरू होगा और यह सामान्य चीज है।

 (ओलिविया बेलास, पीएचडी छात्रा, एडिलेड विश्वविद्यालय और जेसिका शिपमैन, वरिष्ठ व्याख्याता, फ्लिंडर्स विश्वविद्यालय)
 


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vasudha

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