प्यार व समर्पण का पर्व करवा चौथ

punjabkesari.in Thursday, Oct 17, 2019 - 03:50 PM (IST)

प्राचीन काल से ही महिलाएं अपने पति और संतान की मंगल कामना और लंबी उम्र के लिए कई प्रकार के व्रत रखती आई हैं। देखा जाए तो करवा चौथ के व्रत पर पूरा दिन निर्जल व्रत रख, सोलह श्रृगांर कर हाथों में पूजा का थाल लिए चांद का इंतजार करती विवाहित महिलाएं महज परम्परा ही नहीं निभाती बल्कि यह व्रत पति और पत्नी के प्रेम व समर्पण को भी दर्शाता है। पति की लंबी उम्र के लिए दिनभर भूखी प्यासी पत्नी जब चांद की पूजा के बाद अपने पति का चेहरा देखती है तो उनके मन में एक-दूसरे के लिए और भी प्यार भर जाता है।

मन में रहता है प्रेम

पति-पत्नी में भले ही कितनी ही नोक-झोंक क्यों न हो  लेकिन पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखना कोई महिला नहीं भूलती क्योंकि पत्नियों के लिए गृस्थती में होने वाली खटपट एक आम बात है। दिन में पति के लिए झलकता प्यार किसी नराजगी को हमेशा के लिए रहने भी नहीं देता। इस दिन महिलाएं अपनी घरेलू जिम्मेदारियों के साथ ऑफिस जाकर भी निर्जला व्रत रखती हैं। शाम को घर लौटकर पूरे विधि-विधान से करवा चौथ की पूजा करती हैं। करवा चौथ इस बात का प्रतीक है कि पत्नी अपने जीवन साथी के प्रति प्यार, विश्वास, सहयोग व समपर्ण की भावना का आजीवन पालन करती है और मुश्किल समय में उसका साथ निभाने का वचन भी वह हर हाल में निभाती हैं। एक पत्नी शिद्दत से व्रत रखकर खामोशी से ही अपनी महोब्बत जता देती है।

परिवार पर भी अच्छा असर

एक पत्नी जब अपने पति के लिए इस प्रकार के व्रत रखती है तो पति व पत्नी के मधुर संबंधों का सकारात्मक असर बच्चों और बुजुर्ग, मां व बाप पर भी पड़ता है। पति और पत्नी के बीच मन में एक-दूसरे के लिए प्रेम रहने पर भी परिवार के अन्य सदस्यों से भी आत्मीयता हो जाती है।

पति भी देते हैं साथ

करवा चौथ व्रत के दिन महिलाएं अपने जीवन साथी के प्रति प्रेम की भावना से भरी होती है लेकिन इस मामले में पति भी पीछे नहीं रहते।वे भी हर काम में अपनी पत्नी को सहयोग करते हैं। तथा तोहफों के रूप में अपना प्यार पत्नी के ऊपर उंडेल देना चाहते हैं। भले ही बाकी दिनों में वे ऑफिस से देर से घर आएं लेकिन इस दिन वे समय पर घर आ जाते हैं, ताकि उनकी पत्नी सही समय पर पूजा करके कुछ खा सके।

सोलह श्रृगांर में छिपा प्यार

आमतौर पर करवा चौथ का नाम लेते ही सजी-संवरी और सोलह श्रृगांर किए हुए नारी की छवि आंखों के सामने आ जाती है लेकिन सोलह श्रृगांर का अर्थ केवल सौंदर्य से ही नहीं लगाया जा सकता बल्कि यह एक सुहागिन नारी के दिल में छिपे प्यार और समर्पण को सम्पूर्णता प्रदान करता है।

प्राचीन परंपरा

पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखने के लिए परंपरा शायद उस समय से ही शुरू हो गई होगी लेकिन जब दांपत्य संबंधों की शुरूआत हुई होगी तभी से ज्योष्ठ कृष्ण अमावस्या तिथि को वट सावित्रि व्रत, सावन या भादों के महीने में पड़ने वाली तीज, सावन में ही पड़ने वाला मगंला गौरी व्रत का विधि विधान भले ही अलग हो लेकिन सब में पति के लिए मगंल कामना छिपी रहती है।

Content Writer

Anjali Rajput