Navratri Special: कुंवारी लड़कियां क्यों रखती हैं महागौरी का व्रत?

punjabkesari.in Tuesday, Oct 12, 2021 - 04:03 PM (IST)

नवरात्रि का आठवां दिन मां महागौरी की पूजा के लिए समर्पित है। संस्कृत में महा शब्द का अर्थ महान और गौरी का अर्थ उज्ज्वल या गोरा है। करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल प्रवृति मां महागौरी दयालु, देखभाल करने वाली और अपने सभी भक्तों की इच्छा पूरा करने वाली है। यह भी माना जाता है कि मां महागौरी हर तरह के दर्द और पीड़ा से राहत देती हैं। कुवांरी लड़कियों को महागौरी का व्रत जरूर रखना चाहिए क्योंकि इससे उन्हें अच्छा वर मिलता है।

देवी महागौरी की जन्मकथा

देवी पुराण के मुताबिक, एक दिन ऋषि नारद मां पार्वती को उनके पिछले जन्म के बारे में सब कुछ बता दिया और कहा कि भगवान शिव को सबकुछ याद करवाने के लिए उन्हें कठिन तपस्या करनी होगी। तब मां पार्वती ने महल के सभी सुख-सुविधाओं को त्याग दिया और जंगल में जाकर तपस्या शुरू कर दी। हजारों साल बीत गए लेकिन मां पार्वती ने हार नहीं मानी और ठंड, बारिश व तूफान से लड़ते हुए तप किया। उन्होंने कुछ खाने-पीने से भी इंकार कर दिया। इसके कारण उनकी त्वचा काली पड़ गई और शरीर धूल, मिट्टी, पत्तियों से ढक गया।

भगवान शिव ने लौटाई थी माता की चमक

इस कठोर तपस्या के कारण मां पार्वती ने अपनी सारी चमक खो दी और बेहद कमजोर व पीली हो गईं। अंत में, भगवान शिव को सबकुछ याद आ गया और वह मां पार्वती से विवाह करने के लिए तैयार हो गए। चूंकि, वह कमजोर हो गई थी और सभी प्रकार की गंदगी से ढकी हुई थी तो इसलिए भगवान शिव ने उसे शुद्ध करने का फैसला किया। उन्होंने अपने बालों से बहने वाले गंगा के पवित्र जल को मां पार्वती पर गिराया। इस पवित्र जल ने मां पार्वती के शरीर की सारी गंदगी को धो डाला और उनकी खोई हुई चमक वापिस आ गईं। देवी का शरीर त्यंत कांतिमान गौर वर्ण हो जाता है इसलिए उन्हें महागौरी कहा जाने लगा।

मां का स्वरूप

मां महागौरी सफेद कपड़े पहनती है और सफेद रंग के बैल की सवारी करती है। उनकी चार भुजाएं हैं और एक त्रिशूल और डमरू पकड़ा हुआ है जबकि वह उनका तीसरा हाथ अभय मुद्रा औरचौथा वरद मुद्रा में है। मां महागौरी हर जीव की पवित्रता और आंतरिक सुंदरता का प्रतिनिधित्व करती हैं।

जब भूखे शेर को बनाया वाहन

कथा अनुसार, एक बार भूखा शेर भोजन की तलाश में मां उमा के पास पहुंचा। देवी को देख सिंह की भूख बढ़ गई लेकिन जब उसने देखा कि मां तपस्या कर रही है तो वो वहीं बैठकर इंतजार करने लगा। तपस्या पूरी होने के बाद जब देवी ने सिंह को देखा तो उन्हें दया आई और उन्होंने उसे अपना वाहन बना लिया। इसलिए महागौरी का वाहन बैल और सिंह दोनों माने जाते हैं। उन्हें वृषरुधा के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि वह बैल पर सवार हैं। 

महागौरी की पूजा विधि

अष्टमी के दिन मां महागौरी की पूजा के लिए सफेद फूल चढ़ाएं और मंत्रों का जाप करें। इस दिन, युवा लड़कियों को घर पर आमंत्रित किया जाता है और पूजा के हिस्से के रूप में एक शुभ भोजन दिया जाता है। प्रार्थना अनुष्ठान को कंजक पूजन कहा जाता है।

अन्यकथा भी है प्रचलित

देवी पुराण के मुताबिक, शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज का संहार करने के बाद माता पार्वती ने अपने स्वास्थ्य और स्वरूप को पुन: प्राप्त करने भगवान शिव की तपस्या की। तप से उनका श्याम रंग अलग हो गया और मां कोशिकी की उत्पत्ति हुई इसलिए महागौरी मां को शिवा भी कहा जाता है। मां के आभूषण और वस्त्र सफेद है इसलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा भी कहा जाता है।

अष्टमी के दिन कर रहे हैं कन्या पूजन तो...

कुछ लोग अष्टमी के दिन भी कन्या पूजन करते हैं। ध्यान रखें कि कन्या पूजन में कंजकाओं की संख्या 9, 7, 5 या 2 होनी चाहिए। कन्याओं की उम्र 10 साल से अधिक न हो। भोजन कराने के बाद कन्याओं को दक्षिणा जरूर दें। इसके साथ ही गरीब कन्याओं को भोजन जरूर करवाएं।

कैसे करें मां को प्रसन्न

1. नवरात्रि के आठवें दिन बैंगनी रंग पहनना चाहिए। यह बुद्धि और शांति का रंग है और इसे मां महागौरी के दिन पहनना चाहिए। आप गुलाबी रंग के कपड़े भी पहन सकते हैं।
2. अष्टमी के दिन महिलाएं सुहाग की लंबी आयु के लिए देवी मां को चुनरी भेंट करें।
3. मां को गुलाबी फूल, मिठाईयां चढ़ाने से आपको शुभफल मिलेगी। 
4. माता को नारियल का भोग लगाना और ब्राह्मण को नारियल दान देने से नि:संतानों की मनोकामना पूरी होती है। लोग मां को कच्चा दूध, मावा से बनी मिठाई, हलवा, काला चना और ताजे फूल चढ़ाते हैं। बाद में इन वस्तुओं को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
5. “सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते।।” मंत्र का 108 बार जाप करें।

महागौरी का ध्यान मंत्र

वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा महागौरी यशस्वनीम्॥
पूर्णन्दु निभां गौरी सोमचक्रस्थितां अष्टमं महागौरी त्रिनेत्राम्।
वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर किंकिणी रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वाधरां कातं कपोलां त्रैलोक्य मोहनम्।
कमनीया लावण्यां मृणांल चंदनगंधलिप्ताम्॥

महागौरी का स्तोत्र पाठ

सर्वसंकट हंत्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदीयनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।
वददं चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥

Content Writer

Anjali Rajput