सुख और समृद्धि के लिए शुक्रवार को करें यह उपाय, मां लक्ष्मी की बरसेगी कृपा

punjabkesari.in Friday, Jun 25, 2021 - 10:43 AM (IST)

मां लक्ष्मी धन की देवी कहलाती है। मान्यता है कि इनकी पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि व धन की बरकत का वास होता है। जीवन में अन्न व धन से जुड़ी समस्याएं दूर होकर घर में खुशहाली भरा माहौल रहता है। हिंदू धर्म में सप्ताह के सातों दिन किसी ना किसी देवी-देवताओं को समर्पित है। धन की देवी लक्ष्मी शुक्रवार का दिन समर्पित होने से इनकी इस दिन विशेष रुप से पूजा व व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि इससे देवी मां की असीम कृपा मिलती है। इसके साथ ही शुक्रवार के दिन देवी लक्ष्मी के अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इससे घर में सुख, समृद्धि, शांति व खुशहाली का वास होता है। वहीं घर की सुख, शांति व बरकत के लिए रोजाना अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करने से शुभफल की प्राप्ति होती है। चलिए जानते हैं श्री अष्टलक्ष्मी स्त्रोतम का पाठ...

श्री अष्टलक्ष्मी स्त्रोतम:

 

- आदि लक्ष्मी

सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि चन्द्र सहोदरि हेममये । 

मुनिगण वंदिता मोक्ष प्रदायिनी मंजुल भाषिणि वेदनुते । 

पङ्कजवासिनि देवसुपूजित सद-गुण वर्षिणि शान्तिनुते । 

जय जय हे मधुसूदन कामिनि आदिलक्ष्मि परिपालय माम् ।

- धान्य लक्ष्मी:

अयि कलि कल्मष नाशिनी कामिनी वैदिक रूपिणि वेदमयी । 

क्षीर समुद्भव मङ्गल रुपिणि मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते । 

मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि देवगणाश्रित पादयुते । 

जय जय हे मधुसूदनकामिनि धान्यलक्ष्मि परिपालय माम् । 

- धैर्य लक्ष्मी:

जयवरवर्षिणि वैष्णवी भार्गवी मन्त्र स्वरुपिणि मन्त्रं । 

सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद ज्ञान विकासिनि शास्त्रनुते । 

भवभयहारिणि पापविमोचनि साधु जनाश्रित पादयुते । 

जय जय हे मधुसूदन कामिनि धैर्यलक्ष्मि सदापालय माम् । 

- गज लक्ष्मी:

जय जय दुर्गति नाशिनी कामिनी वैदिक रूपिणी वेद में । 

राधा गज तुरग पदाति समावृत परिजन मंडित लोकनुते । 

हरिहर ब्रम्ह सुपूजित सेवित ताप निवारिणि पादयुते । 

जय जय हे मधुसूदन कामिनि गजलक्ष्मि रूपेण पालय माम् ।

- सन्तान लक्ष्मी:

अयि खगवाहिनी मोहिनि चक्रिणि रागविवर्धिनि ज्ञानमये ।

गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि सप्तस्वर भूषित गाननुते ।

सकल सुरासुर देव मुनीश्वर मानव वन्दित पादयुते ।

जय जय हे मधुसूदन कामिनि सन्तानलक्ष्मि परिपालय माम् ।

- वीर लक्ष्मी:

जय कमलासनि सद-गति दायिनी ज्ञान विकासिनि गानये । 

अनुदिन मर्चित कुङ्कुम धूसर भूषित वसित वाद्यनुते । 

कनकधरास्तुति वैभव वन्दित शङ्करदेशिक मान्यपदे । 

जय जय हे मधुसूदन कामिनि विजयक्ष्मि परिपालय माम् ।

- विद्या लक्ष्मी:

प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवी शोक विनाशिनि रत्नमयी । 

मणिमय भूषित कर्णविभूषण शान्ति समावृत हास्यमुखे ।

 नवनिद्धिदायिनी कलिमलहारिणि कामित फलप्रद हस्तयुते । 

जय जय हे मधुसूदन कामिनि विद्यालक्ष्मि सदा पालय माम् ।

- धन लक्ष्मी:

धिमिधिमि धिन्धिमि धिन्धिमि-दिन्धिमी दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये ।

घुमघुम घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम शङ्ख निनाद सुवाद्यनुते ।

वेद पुराणेतिहास सुपूजित वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते ।

जय जय हे कामिनि धनलक्ष्मी रूपेण पालय माम् ।

अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि ।

विष्णुवक्षःस्थलारूढे भक्तमोक्षप्रदायिनी ।।

शङ्ख चक्र गदाहस्ते विश्वरूपिणिते जयः ।

जगन्मात्रे च मोहिन्यै मङ्गलम शुभ मङ्गलम ।

। इति श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम सम्पूर्णम ।


 

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neetu