देवउठनी एकादशी के दिन बिल्कुल ना भूलें तुलसी पर यह धागा बांधना, दिन-रात होगी तरक्की

punjabkesari.in Tuesday, Oct 28, 2025 - 06:09 PM (IST)

नारी डेस्क: सनातन परंपरा में कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को देवोत्थान या फिर कहें देवउठनी एकादशी कहा जाता है। हिंदू धर्म में इस दिन को बेहद शुभ माना गया है क्योंकि इसी दिन भगवान विष्णु अपनी योगनिद्रा से जागते हैं और इस दिन के बाद से ही  शुभ एवं मंगल कार्यों की शुरुआत हो जाएगी ।  देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी के पौधे से जुड़ी कुछ पौराणिक और धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं, जिनमें पौधे पर धागा बांधने जैसा विधान भी मिलता है।

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कब है देवउठनी एकादशी 

कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरूआत 01 नवंबर को सुबह 09:11 बजे होगी, इसका समापन 02 नवंबर को सुबह 07:31 बजे, ऐसे में इस साल देवउठनी एकादशी का व्रत 01 नवंबर 2025 को रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्व है, इस व्रत और पूजा से समस्त पापों का नाश होता है और घर-परिवार में सुख, शांति और समृद्धि आती है।


तुलसी माता में बांधे  पीले रंग का धागा

ज्याेतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन  पीले रंग का धागा लें और उसमें 108 गांठ लगा लें। इसके बाद इसे तुलसी के पौधे में बांध दें, फिर विधिवत पूजा करने के साथ प्रार्थना करें। यह उपाय करने से धन-समृद्धि और माता लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी।  इसके साथ ही कहा  इस दिन तुलसी का पूजन करना तथा भोग-भोजन में तुलसी के पत्ते शामिल करना शुभ माना जाता है। तुलसी विवाह का विधान भी इसी एकादशी से जुड़ा हुआ है - जहां भगवान विष्णु को शालिग्राम स्वरूप में तुलसी से ‘विवाह’ कराया जाता है। 

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पीला धागा बांधने की प्रक्रिया

कोई मनोकामना पूरी करना चाहते हैं तो  पीले धागे को अपने शरीर की लंबाई के बराबर काट लें। अब तुलसी के पास जाकर इस पीले धागे में 108 गांठ बांधें।  इस दौरान भी तुलसी जी से अपनी मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना करते रहें, फिर इस धागे को तुलसी के पौधे में बांध दें। मनोकामना पूरी होने के बाद इस धागे को निकालकर जल में प्रवाहित कर दें। 


 कुछ बातें ध्यान देने योग्य


देवउठनी एकादशी के दिन सुबह तुलसी-पौधे के सामने स्नान कर साफ कपड़े पहनें। तुलसी के चारों ओर हल्की सफाई करें, गमला नीचे रखें और वातावरण शांत रखें।  तुलसी के पौधे के पास दीपक जलाएं और “ॐ तुलस्यै नमः”, “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” जैसे मंत्रों का पाठ करें। पूजा के बाद धागा-बांधने का स्मरण करें कि यह एक भक्ति-प्रतीक है, और कर्म के साथ शुभ विचार व धैर्य बनाएं।
 


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vasudha

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