''बच्चे को जन्म देना है या नहीं ये मां का फैसला''... दिल्ली HC ने 33 हफ्ते बाद भी अबॉर्शन की दी अनुमति
punjabkesari.in Wednesday, Dec 07, 2022 - 03:44 PM (IST)
दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज महिलाओं को लेकर बेहद बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने 33 सप्ताह की गर्भवती महिला को चिकित्सकीय गर्भपात की अनुमति दे दी। कोर्ट का कहना है कि गर्भपात के मामलों में ‘‘अंतिम फैसला'' जन्म देने संबंधी महिला की पसंद और अजन्मे बच्चे के गरिमापूर्ण जीवन की संभावना को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
एक महिला को दी गर्भपात की अनुमति
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 26 वर्षीय एक महिला को गर्भपात कराने की मंगलवार को अनुमति देते हुए ये फैसला सुनाया। महिला ने भ्रूण में मस्तिष्क संबंधी कुछ असामान्यताएं होने के कारण गर्भ को 33वें सप्ताह में गिराने की अनुमति मांगी थी। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह ने कहा कि एक गर्भवती महिला का गर्भपात कराने संबंधी अधिकार दुनिया भर में बहस का विषय बन रहा है, भारत अपने कानून में एक महिला की पसंद को मान्यता देता है। वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता ने भ्रूण में मस्तिष्क संबंधी विकार का पता चलने के बाद गर्भपात कराने की अनुमति मांगी है।
चिकित्सकीय तरीके से मिल सकती है गर्भपात की अनुमति
न्यायाधीश ने महिला को चिकित्सकीय तरीके से तत्काल गर्भपात कराने की अनुमति देते हुए कहा कि दुर्भाग्य से चिकित्सकीय बोर्ड ने दिव्यांगता के स्तर या जन्म के बाद भ्रूण के जीवन की गुणवत्ता पर कोई स्पष्ट राय नहीं दी और कहा कि ‘‘ ऐसी अनिश्चितता के कारण गर्भपात कराने की मांग करने वाली महिला के पक्ष में फैसला किया जाना चाहिए।'' अदालत ने कहा, ‘‘ अंतत: अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि ऐसे मामलों में अंतिम फैसला जन्म देने संबंधी महिला की पसंद और अजन्मे बच्चे के गरिमापूर्ण जीवन की संभावना को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। यह अदालत इस मामले में चिकित्सकीय तरीके से गर्भपात की अनुमति देती है।''
महिला ने कोर्ट से मांगी थी मदद
अदालत ने कहा, ‘‘ यह अधिकार महिला को यह फैसला करने का हक देता है कि वह बच्चे को जन्म देना चाहती है या नहीं। भारत एक ऐसा देश है जो कानून के तहत महिला की इस पसंद को मान्यता देता है।'' अदालत ने महिला को एलएनजेपी, जीटीबी या अन्य किसी अपनी पसंद के चिकित्सकीय केंद्र में कानून के तहत गर्भपात कराने की अनुमति देते हुए कहा, ‘‘मां ने यह फैसला तार्किक तरीके से किया है।'' महिला ने पिछले सप्ताह अदालत का रुख किया था। उससे पहले जीटीबी अस्पताल ने इस आधार पर गर्भपात करने से इनकार कर दिया था कि इसमें न्यायिक हस्तक्षेप की जरूरत है, क्योंकि (गर्भपात के लिए) याचिकाकर्ता का गर्भ मान्य सीमा यानी 24 सप्ताह से अधिक का है।
अल्ट्रासाउंड जांच के बाद महिला को लेना पड़ा ये फैसला
दरअसल याचिकाकर्ता गर्भवती महिला ने सेरेब्रल विकार का हवाला देते हुए अपने 33 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की अनुमति मांगी थी। याचिका में कहा गया था कि गर्भधारण के बाद से याचिकाकर्ता ने कई अल्ट्रासाउंड कराए। महिला का कहना था कि 12 नवंबर के अल्ट्रासाउंड की जांच में पता चला कि गर्भ में पल रहे भ्रूण में सेरेब्रल विकार है, जिसकी पुष्टि के लिए 14 नवंबर को एक निजी अल्ट्रासाउंड में जांच कराई। उसमें भी भ्रूण में सेरेब्रल विकार का पता चला। इसके बाद याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने बांबे हाईकोर्ट और कलकत्ता हाईकोर्ट के एक फैसले को उद्धृत करते हुए कहा था कि एमटीपी एक्ट की धारा 3(2)(बी) और 3(2)(डी) के तहत भ्रूण को हटाने की अनुमति दी जा सकती है।
गर्भपात को लेकर क्या है कानून
भारत में MTP ACT (1971) के तहत गर्भ को गिराने के लिए कानूनी रूप से अनुमति दी गई है। यह प्रेग्नेंसी के मेडिकल टर्मिनेशन यानी प्रेग्नेंसी को खत्म करने की इजाजत देता है। MTP ऐक्ट के अनुसार- केवल बलात्कार पीड़िताओं, नाबालिगों, महिलाएं जिनकी वैवाहिक स्थिति गर्भावस्था के दौरान बदल गई हो, मानसिक रूप से बीमार महिलाओं या फिर फीटल मॉलफॉर्मेशन वाली महिलाओं को ही 24 हफ्ते तक का गर्भ गिराने की अनुमति है।