बेटे नहीं बहुएं बनती हैं सास-ससुर का सहारा

punjabkesari.in Friday, Jul 24, 2020 - 05:56 PM (IST)

रिश्ते बेहद नाजुक होते हैं। इन्हें बनाना जितना आसान होता है उतना ही मुश्किल होता है इन्हें निभाना। भारतीय समाज में लड़कों को हमेशा ज्यादा प्यार मिलता है, फिर चाहे वो दामाद हो या घर का बेटा। लेकिन अगर बात करें घर के बुजुर्गों या सास-ससुर से रिश्ते निभाने की तो उनमें घर की बेटियां और बहुएं सबसे आगे है।

हेल्प ऐज इंडिया की वार्षिक रिपोर्ट 

हाल ही में हेल्प ऐज इंडिया ने बुजुर्गों के साथ हो रहे बुरे व्यवहार पर वार्षिक रिपोर्ट जारी की है। जिसमें बताया गया है कि मई 2019 में एक अध्ययन किया गया। जिसमें भारत के 20 शहरों से 30 से 50 साल की उम्र के 3,000 लोगों शामिल किया गया था। इस उम्र के लोगों को इसलिए चुना गया था क्योंकि उन्हें अपने बच्चों और माता-पिता दोनों का ख्याल रखना पड़ता है। 

दामाद-बेटों की तुलना में बेटी-बहुएं करती हैं ज्यादा केयर 

इस रिपोर्ट में जो दिलचस्प बात सामने आई वो ये थी कि बुजुर्गों की देखभाल करने में बहुओं का योगदान सबसे ज्यादा था। वहीं बेटों की तुलना में 68% बेटियां खरीदारी, भोजन तैयार करने, गृह व्यवस्था, कपड़े धोने, दवा लेने जैसी गतिविधियों में बड़ों की मदद करती हैं। 45% लोगों ने बड़ों की सेवा को बोझ समझा जबकि तकरीबन 35 प्रतिशत लोगों ने बुजुर्गों की देखभाल करने में कभी खुशी महसूस नहीं की। 

हम सब एक दिन बूढ़े हो जाएंगे

ऐजवेल फाउंडेशन के अध्यक्ष हिमांशु रथ कहते हैं, 'वृद्धावस्था हमारे जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है। हम सब एक दिन बूढ़े हो जाएंगे। यदि हम बुजुर्गों के साथ बातचीत करते हैं और उनकी समस्याओं को समझते हैं तो हम अपने बुढ़ापे के लिए बेहतर तैयार होंगे। इस समय वृद्ध व्यक्तियों की जरूरतों और अधिकारों के बारे में समाज में अधिक जागरूकता पैदा करने की जरूरत है।' 

अक्सर देखा जाता है कि बुजुर्गों को बुढ़ापे में खराब स्वास्थ्य, चिकित्सीय जटिलताओं आदि बीमारियों से गुजरना पड़ता है। इसलिए उनके मानवाधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाना जरूरी है। आखिर उन्होंने हमें आज इतना बड़ा कर एक कामयाब इंसान बनाया है। उनकी देखभाल करना, हर जरूरत को पूरा करना हर किसी का फर्ज है।

Content Writer

Bhawna sharma