Corona Vaccine: बच्चों को अभी नहीं दी जाएगी वैक्सीन, करना होगा लंबा इंतजार

punjabkesari.in Thursday, Dec 10, 2020 - 04:49 PM (IST)

कोरोना के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में इसके केस कम हुए थे लेकिन अब एक बार फिर इसके मामले बढ़ते जा रहे हैं। लोगों को कोरोना की वैक्सीन का इंतजार था और ब्रिटेन ऐसा पहला देश है जहां कोरोना वैक्सीनेशन शुरू हो गई है। इसके बाद लोगों ने वायरस के खत्म होने की उल्टी गिनती भी शुरू कर दी है लेकिन वहीं इस बीच वैक्सीन के कुछ साइड इफेक्ट्स भी सामने आ रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो साल के अंत तक या फिर साल की शुरूआत तक आम लोगों के लिए वैक्सीन उपलब्ध हो जाएगी लेकिन वैक्सीन बच्चों को नहीं दी जाएगी। जी हां बच्चों को अभी कोरोना वैक्सीन के लिए लंबा इंतजार करना होगा। 

ट्रायल में बच्चों को नहीं किया गया शामिल 

वैक्सीन के लिए बच्चों को लंबा इंतजार इसलिए करना होगा क्योंकि इन्हें अभी ट्रायल में शामिल नहीं किया गया है। ऐसे में डॉक्टरों को या फिर विशेषज्ञों को इस बात की जानकारी नहीं है कि वैक्सीन बच्चों के लिए कितनी खतरनाक होगी और कितनी नहीं। हालांकि इस पर ट्रायल होगा लेकिन कोरोना वैक्सीन बाजार में आने के बाद। 

आपातकालीन स्थिति में किया जा सकता है टीकाकरण 

हालांकि ब्रिटेन ने फाइजर-बायोएनटेक की वैक्सीन को इस बात की अनुमति दे दी है कि अगर आपातकालीन में जरूरत पड़े तो वह बच्चों का टीकाकरण कर सकते हैं। 

बच्चों पर ट्रायल करने की योजना 

इस पर ​अमेरिका में एमोरी वैक्सीन सेंटर के निदेशक डॉ रफी अहमद की माने तो उन्होंने कहा है कि इस वैक्सीन में बच्चों को शामिल न करने का एक ही कारण है कि अभी उन्हें इस ट्रायल में शामिल नहीं किया है। इसलिए वह इस बात से अनजान है कि इसके परिणाम अच्छे होंगे या फिर बुरे। हालांकि कुछ कंपनिया बच्चों पर अलग से ट्रायल शुरू करने की योजना बना रहे हैं। 

1 साल लगने की उम्मीद 

वैक्सीन का ट्रायल बड़ों के मुकाबले बच्चों पर करना ज्यादा मुश्किल होता है इसका कारण है कि वैक्सीन बनाते वक्त सभी चीजों और सुरक्षा का ध्यान रखा जाता है ताकि बच्चों की सेहत पर इसका कोई बुरा असर न हो। इसलिए ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि इस प्रक्रिया में लगभग 1 साल लग जाएगा। 

आपको बता दें कि विशेषज्ञों ने यह बात भी कही है कि वायरस का प्रभाव बड़ों के मुकाबले बच्चों में कम देखने को मिला है। कोरोना महामारी की शुरुआत से ही बड़ों की तुलना में बच्चों में ये बीमारी और इसकी मृत्यु दर काफी कम रही है। 

Content Writer

Janvi Bithal