"जरूरत के समय बहन को अकेला नहीं छोड़ सकता भाई, हमारे देश के बच्चों के नहीं है ये संस्कार"
punjabkesari.in Wednesday, Jun 08, 2022 - 05:53 PM (IST)
दिल्ली उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की है कि कोई भाई ऐसे समय में अपनी तलाकशुदा बहन की परेशानियों को चुपचाप नहीं देख सकता, जब बहन को उससे वित्तीय मदद की आवश्कयता हो। अदालत ने साथ ही यह भी टिप्पणी की कि जीवन के सुनहरे दिनों में अपने वृद्ध माता-पिता की देखभाल करना बच्चों का कर्तव्य है। संबंधित मामले में एक महिला ने अदालत में दायर याचिका में दावा किया था कि उसके पूर्व पति की तलाकशुदा बहन को आश्रित नहीं माना जा सकता। अदालत ने इस दावे को ‘‘निराधार’’ बताते हुए यह टिप्पणी की।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने की यह टिप्पणी
न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा, ‘‘मेरी राय में, यह रुख निराधार है। भारत में भाइयों एवं बहनों का संबंध और उनकी एक दूसरे पर निर्भरता भले ही हमेशा वित्तीय नहीं होती, लेकिन ऐसी उम्मीद की जाती है कि जरूरत के समय बहन या भाई एक-दूसरे को छोड़ेंगे नहीं या उन्हें नजरअंदाज नहीं करेंगे।’’ उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति परिवार के सदस्यों के बीच एकजुटता को बढ़ावा देती है।
भारतीय संस्कृति एकजुटता को बढ़ावा देती है: कोर्ट
उच्च न्यायालय ने कहा कि "परिवार के सदस्यों के एक दूसरे के प्रति स्नेह के कारण वे आपस में जुड़े रहते हैं और एक-दूसरे के लिए मजबूती से खड़े रहते हैं। विशेष रूप से, भाई और बहन के रिश्ते में एक-दूसरे का ख्याल रखने की गहरी भावना होती है। भारत के त्योहार, नियम और परंपराएं एक दूसरे का ख्याल रखने, स्नेह करने और एक-दूसरी की जिम्मेदारी लेने को बढ़ावा देते हैं।’’याचिकाकर्ता ने अनुरोध किया कि उसके पूर्व पति द्वारा उसे दिया जाने वाला गुजारा भत्ता बढ़ाया जाए। याचिका पर सुनवाई करते समय अदालत ने कहा कि व्यक्ति के 79 वर्षीय पिता, एक तलाकशुदा बहन, दूसरी पत्नी और एक बेटी हैं, जो उस पर आश्रित हैं।
बहन की परेशानियों को चुपचाप नहीं देख सकता भाई: कोर्ट
अदालत ने कहा, ‘‘इस बात में कोई संदेह नहीं है कि बहन को उसके पति से गुजारा भत्ता मिलता है, लेकिन भाई ऐसे समय में अपनी बहन की परेशानियों को चुपचाप नहीं देख सकता, जब उसे उसकी जरूरत हो। उसे अपने खर्चों की सूची में अपनी बहन की मदद करने के लिए प्रावधान करना होता है। इसके अलावा अपने जीवन के सुनहरे दिनों में अपने माता-पिता की देखभाल करना भी बेटा/बेटी का कर्तव्य है। पुरुष के पिता कमाते नहीं हैं और उन्हें अपने परिवार को खुश देखकर अपने बुढ़ापे का आनंद लेना चाहिए। इसलिए बेटा अपने पिता की इच्छाओं एवं जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हो, यह सुनिश्चित करने के लिए इस बात पर गौर करना आवश्यक है कि गुजारा भत्ता की राशि तय करते समय उसके पिता की देखभाल पर होने वाले खर्च को भी संज्ञान में लिया जाए।’
पांच भागों में विभाजित होगी कमाई
अदालत ने कहा कि रिश्तों के हर मामले को केवल गणितीय फार्मूले में नहीं बांधा जा सकता और प्रत्येक मामले को उसकी विशिष्ट परिस्थितियों को देखते हुए तय किया जाना चाहिए। गुजारा भत्ता तय करते समय वित्तीय क्षमता को निस्संदेह ध्यान में रखना होता है और इसी तरह पूरी पारिवारिक परिस्थिति को भी ध्यान में रखे जाने की आवश्कयता है। अदालत ने कहा कि व्यक्ति को प्रतिमाह 35,000 रुपए वेतन मिलता है और उसकी पहली पत्नी से हुआ उसका बेटा वयस्क है। अदालत ने कहा कि व्यक्ति की आय पर चार लोग आश्रिम हैं, वह, उसकी पूर्व पत्नी, उसकी दूसरी पत्नी और दूसरे विवाह से हुई उसकी बेटी तथा इसके अलावा उसे अपने पिता और तलाकशुदा बहन के लिए भी खर्च करना होता है। इसलिए आय को पांच भागों में विभाजित करना होगा, जिसके दो हिस्से परिवार का कमाने वाला सदस्य होने के नाते प्रतिवादी को दिए जाएंगे और बाकी आश्रितों को एक-एक हिस्सा दिया जाएगा।’’