IVF बार-बार फेल हुआ, उम्मीदें टूट चुकी थीं… अब AI ने बना दिया नामुमकिन को मुमकिन
punjabkesari.in Saturday, Sep 13, 2025 - 03:24 PM (IST)

नारी डेस्क: भारत में फर्टिलिटी (प्रजनन) क्लीनिक्स अब इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) के सफल परिणाम बढ़ाने और खर्च कम करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का सहारा ले रहे हैं। देश की बड़ी IVF कंपनियां जैसे नोवा IVF, बिड़ला फर्टिलिटी, प्राइम IVF, फर्टिस और मदरहुड IVF AI आधारित उपकरणों का उपयोग कर रही हैं, खासकर अंडाणु (एंब्रियो) और शुक्राणु (स्पर्म) के चयन में, ताकि सफलता दर बेहतर हो, खर्च कम हो और सेवा ज्यादा लोगों तक पहुंच सके।
नोवा IVF ने लॉन्च किया AI आधारित embryo assessment टूल
बैंगलोर की नोवा IVF ने हाल ही में Vita Embryo नामक एक AI आधारित embryo जांच का उपकरण पेश किया है, जिसे दक्षिण कोरिया की कंपनी Kai Health के साथ मिलकर विकसित किया गया है। नोवा के CEO शोभित अग्रवाल ने बताया कि IVF लैब हर प्रजनन इलाज की सबसे महत्वपूर्ण जगह होती है, इसलिए वे तकनीकी और मेडिकल इनोवेशन को अपनाने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। शोधों के अनुसार, Vita Embryo तकनीक से अंडाणु की सटीक पहचान बेहतर होती है, जिससे गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है। हालांकि इस तकनीक को अपनाने का खर्च थोड़ा ज्यादा है, लेकिन नोवा इसे मरीजों से अतिरिक्त चार्ज नहीं लेती और Tier-2 और Tier-3 शहरों तक अपनी AI सेवाएं बढ़ाने की योजना बना रही है।
लागत और सफलता में संतुलन
AI तकनीक को अपनाने में शुरुआती निवेश काफी होता है, जिसमें लाइसेंसिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर और ट्रेनिंग शामिल हैं। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह खर्च लंबे समय में खुद को वापस कर देता है। प्राइम IVF की संस्थापक निशी सिंह के अनुसार, दुनिया भर में AI से हर साइकिल की लागत 10-15% बढ़ जाती है, लेकिन यह दोबारा साइकिल लेने की जरूरत को कम कर देता है। निशी कहती हैं, "बिना AI के क्लीनिक्स के लिए मरीज बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि अब जागरूकता बढ़ रही है। AI हमारे मरीज-केंद्रित और साक्ष्य आधारित इलाज के सिद्धांत से मेल खाता है और यह हमें क्लीनिकल और आर्थिक रूप से लाभ देगा।" प्राइम IVF अगले तीन सालों में अपनी तकनीकी बजट का 15-20% AI प्लेटफॉर्म्स पर खर्च करने की योजना बना रही है, जिसमें embryo assessment, प्रिडिक्टिव एनालिटिक्स और मरीजों से जुड़ाव के लिए AI का उपयोग होगा। वे अभी AI से embryo की ग्रोथ का रियल टाइम ट्रैकिंग भी कर रहे हैं।
AI से शुक्राणु (स्पर्म) की जांच भी बेहतर
हैदराबाद की फर्टिस कंपनी ने AI आधारित semen analysis (शुक्राणु जांच) सिस्टम अपनाया है, जो प्रति सैंपल 3,000 से ज्यादा स्पर्म को जांचता है और उनकी संख्या, गतिशीलता और संरचना का आकलन करता है। यह सिस्टम DNA टूट-फूट को भी पहचानता है और जांच का समय 80% तक घटा देता है। फर्टिस की मेडिकल डायरेक्टर ज्योथी सी बुडि के अनुसार, पारंपरिक तरीके DNA नुकसान को अक्सर मिस कर देते हैं और मैन्युअल जांच की वजह से परिणाम असंगत आते हैं। पुरुष बांझपन एक बढ़ती समस्या है, और जल्दी सही निदान से दंपतियों की मदद हो सकती है।
बिड़ला फर्टिलिटी का AI टूल विकास
बिड़ला फर्टिलिटी एंड IVF अपनी AI आधारित embryo grading टूल खुद विकसित कर रही है, जिसमें अपने डेटा और क्लीनिकल एक्सपर्टीज को मिलाया जा रहा है। कंपनी के CEO अभिषेक अग्रवाल कहते हैं कि AI पूरी तरह इंसानी भूमिका को खत्म नहीं करेगा, लेकिन प्रक्रिया को अधिक निष्पक्ष और अनुमानित बनाएगा।
शुरुआती परिणाम और नियामक पहलू
नोवा ने AI आधारित embryo चयन तकनीक को एक महीने पहले ही अपनाया है। नोवा की एम्ब्रायोलॉजी हेड सुझाता रामकृष्णन के अनुसार, परिणाम देखने में 6 से 12 महीने लगेंगे। उन्होंने कहा कि AI भारत के ART Act 2021 के अनुपालन में भी मदद करेगा, जो कि एक बार में एक ही embryo ट्रांसफर करने पर जोर देता है। AI सटीकता और मरीज की सुरक्षा में संतुलन बनाएगा।
भारत का फर्टिलिटी मार्केट बढ़ रहा है
एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत का फर्टिलिटी मार्केट 2028 तक 12,000 से 14,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने की संभावना है, जहां लगभग 5.5 लाख IVF साइकिलें होंगी। लैंसेट के आंकड़ों के मुताबिक, 2021 में भारत की बांझपन दर 1.9% थी, जो प्रतिस्थापन स्तर 1.1% से ऊपर है। साथ ही, अंडा जमाने (Egg Freezing) और embryo बैंकिंग का मार्केट भी 2023 में 306 मिलियन डॉलर था, जो 2030 तक 17.4% की कंपाउंड वार्षिक दर से बढ़कर 632.5 मिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।
भारत में IVF कंपनियां AI तकनीक को अपनाकर न केवल सफलता दर बढ़ा रही हैं, बल्कि मरीजों के लिए इलाज को सस्ता और आसान भी बना रही हैं। इससे देश में बांझपन के इलाज में क्रांति आने की उम्मीद है।