Women Day: यहां महिलाओं का पैतृक संपत्ति पर होता है पूरा हक, सभी फैसले लेती हैं खुद

punjabkesari.in Friday, Mar 08, 2019 - 02:19 PM (IST)

आज हर क्षेत्र में महिलाएं बाजी मार रही है लेकिन तब भी अधिकतर देशों में महिलाओं को वो दर्जा नहीं दिया जाता जिनकी वो हकदार होती है। आज भी हमारे समाज के कई इलाकों में महिलाओं को पुरुष से कम आंका जाता है लेकिन हम आपको उस समुदाह के बारे में बताने जा रहे है जहां पुरुषों से ज्यादा महिलाओं की चलती हैं। यूं कहे कि यहां महिला प्रधान है। मेघालय के खासी और जयंतिया हिल्स इलाके में रहने वाला खासी समुदाय मातृसत्तात्मक व्यवस्थाओं के लिए जाना जाता है। जी हां, सुनने में तो थोड़ी हैरानी होगी लेकिन इस समुदाय में फैसले घर की महिलाएं ही करती हैं। यहां तक की बच्चों का उपनाम भी मां के नाम पर रखा जाता हैं। 

 

इन जगहों पर 'खासी जनजाती' का राज 

खासी जनजाति के लोग मुख्य तौर पर मेघालय के खासी में बसे हैं। मेघालय में इनकी संख्या करीब 15 लाख है लेकिन असम, मणिपुर, पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में इनकी संख्या देखने को मिलती है। 

शादी के बाद ससुराल में रहते है पुरुष 

सुनकर आपको भी हैरानी होगी लेकिन यही सच है कि यहां शादी के बाद महिलाओं के बजाएं पुरुष ससुराल में रहता है। बात दहेज प्रथा की करें तो इसका तो यहां कोई नाम ही नहीं है। दरअसल, खासी समुदाय में घर-परिवार और समाज को संभालने की जिम्मेदारी महिलाओं पर होती हैं। इतना ही नहीं, संपत्ति भी बेटे की बजाए परिवार की सबसे छोटी बेटी के नाम की जाती है। छोटी बेटी अपने माता-पिता का ध्यान रखने के लिए शादी के बाद उन्हीं के साथ रहती हैं और अपने पति को भी अपने साथ रखती हैं। 

 

बेटे के जन्म लेने पर मनाया जाता है जश्न 

आप भी ऐेसे समुदाय के लोग है जिनके घर बेटी जन्म लेती है और उनके घर सन्नाटा छा जाता है लेकिन खासी जमजाति के लोग बेटियों के जन्म लेने पर जश्न मनाचे हैं, जबकि बेटे के जन्म पर इतनी खुशी नहीं होती है। इस जनजाति का हर परिवार चाहता है कि उसके घर बेटी जन्म लें, ताकि वंशावली चलती रहे। 

कब शुरू हुई महिला प्रधान व्यवस्था?

समुदाय के लोगों का कहना है कि प्राचीन समय में पुरुष युद्ध के लिए लंबे समय तक घर से बाहर रहते थे। उनकी गैर-मौजूदगी में परिवार और समाज की देखरेख का जिम्मा महिलाएं संभालती थीं। बस तभी से यहां महिलाओं का राज शुरू हो गया। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि खासी समुदाय में पहले महिलाएं बहुविवाह करती थीं इसलिए बच्चे का सरनेम उसे जन्म देने वाली मां के नाम पर ही रख दिया जाता था।


 

Content Writer

Sunita Rajput