सावन स्पेशल: क्यों की जाती है शिवलिंग की आधी परिक्रमा?

punjabkesari.in Thursday, Jul 09, 2020 - 05:01 PM (IST)

हिंदू धर्म में सावन का महीना बेहद शुभ माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दौरान शिवजी की पूजा व व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है और सभी पापों से भी मुक्ती मिल जाती है। इस दौरान शिवलिंग पर धतूरा, बेलपत्र, फूल आदि चढ़ाकर शिव भगवान की अधारना की जाती है। मगर, शास्त्रों में शिवलिंग की पूजा के कुछ नियम बताए गए हैं, उन्हीं नियमों से एक है  शिवलिंग अर्ध चंद्राकार परिक्रमा।

मगर, आपने देखा होगा जब भक्त शिवलिंग की परिक्रमा करते हैं तो सिर्फ आधा चक्कर ही लगाती हैं क्योंकि शिवलिंग से निकलने वाली दूधधारा को लांगने की इजाजत नहीं होती। आज हम आपको यही बताएंगे, कि आखिर क्यों शिवलिंग की आधी परिक्रमा ही की जाती है।

क्यों की जाती है आधी परिक्रमा?

शास्त्रों के मुताबिक, शिवलिंग की परिक्रमा करते समय पूरा चक्कर नहीं लगाना चाहिए बल्कि उसी जगह से वापिस लौट आना चाहिए। माना जाता है कि शिवलिंग जलाधारी यानि अरघा में सबसे ज्यादा ऊर्जा और शक्ति होती है, जिससे शरीर पर बुरा असर पड़ सकता है।

हमेशा बाईं तरफ से शुरू करें परिक्रमा

शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बाईं तरफ से करनी चाहिए और जलाधारी तक जाकर दूसरे सिरे तक चक्कर लगाना चाहिए।

कब लांघा जा सकता है जलाधारी

शास्त्रों के मुताबिक, तृण, काष्ठ, पत्ता, पत्थर, ईंट से ढंके हुए जलाधारी को लाघंने से कोई दोष नहीं लगता। पुरानी कथा के अनुसार, एक बार राजा गंधर्व ने शिवलिंग की परिक्रमा करते समय निर्मलि जल पर पांव रख दिया था। इसके बाद गंधर्व की सारी शक्तियां चली गई।

शिवलिंग के ऊपर क्यों टांगा जाता है घड़ा?

आपने देखा होगा कि मदिंरों में शिवलिंग के उपर एक घड़ा रखा जाता है, जिससे हमेशा पानी या दूध की बूंदें शिवलिंग पर गिरती हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि शिवलिंग में काफी ऊर्जा होती है और जल व दूध से वो शांत होकर सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करता है।

Content Writer

Anjali Rajput