Uttarakhand Disaster: 37 साल पहले से मिल गए थे तबाही के संकेत, वैज्ञानिक भी हैरान!
punjabkesari.in Monday, Feb 08, 2021 - 02:45 PM (IST)
उत्तराखंड के चमोडी जिले में ग्लेशियर के टूटने से हुई तबाही के कारण हर कोई सदमे में हैं। ऋषिगंगा नदी के जलप्रलय से जहां कई लोग अपनी जान गवां चुके हैं वहीं करीब 200 से अधिक लोग लापता हैं। हालांकि लोगों को बचाने के लिए लगातार रेस्कू ऑपरेशन किया जा रहा है लेकिन क्या आप जानते हैं कि 37 साल पहले ही इस तबाही के संकेत मिलने लगे थे।
Prayers for everyone affected 🙏
— Pankaj Nain IPS (@ipspankajnain) February 7, 2021
ITBP, NDRF, SDRF and local admin is working it's best for relief and rescue work 🙏
TapovanDam disaster after glacier break in Chamoli pic.twitter.com/7rx3iWi9TG
37 साल पहले से मिलने लगे थे तबाही के संकेत
दरअसल, 37 साल पहले भूविज्ञानी (वर्तमान में यूसैक निदेशक) डॉ. एमपीएस बिष्ट व वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान द्वारा एक शोध किया गया था। इसमें बताया गया था कि ऋषिगंगा कैचमेंट एरिया के 8 स भी ज्यादा ग्लेशियर तेज रफ्तार से पिघल रहे हैं। अब जाहिर हैं कि अगर ग्लेशियर पिघलेगा तो जलप्रवाह भी होगा। यही नहीं, पिघले ग्लेशियरों के पानी का दबाव सिर्फ ऋषिगंगा ही नहीं बल्कि अलकनंदा, धौलीगंगा, विष्णुगंगा, भागीरथी गंगा पर भी पड़ता है।
आशंका जताई गई है कि ऋषिगंगा प्रोजेक्ट से पहले ग्लेशियर से निकले एवलॉन्च की वजह से ऋषिगंगा नदी का बहाव कहीं ठहरकर झील बन गया होगा। फिर झील में पानी का जमाव अधिक होने के कारण वो अचानक टूटकर जलप्रलय का कारण बन गई। अगर वैज्ञानिक समय रहते इन संकेतों पर ध्यान देते तो आज शायद प्रलय का यह मंजर ना देखना पड़ता। वहीं, इसे रोकने के लिए संभव प्रयास भी किए जा सकते थे।
Saddened and pained by the news of the avalanche in #Chamoli District of #Uttarakhand. It was terrifying to watch the video of the disaster. Hope those displaced are found and reunited with their loved ones
— Baijayant Jay Panda (@PandaJay) February 7, 2021
Prayers to Mahaprabhu Jagannath for the safety and well-being of all🙏🙏 pic.twitter.com/freu2FdjxV
0.5 डिग्री बढ़ चुका तापमान
नंदा देवी ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने का एक कारण भगौलिक परिस्थितियां और लगातार बढ़ रहा प्रदूषण भी है। गढ़वाल में दूसरे क्षेत्रों में मुकाबले बारीश 30% कम होती है और यहां का तापमान भी लगातार बढ़ रहा है। साल 1980 से लेकर 2017 के बीच यहां का तापमान 0.5 डिग्री तक बढ़ चुका है।
...तो एवलॉन्च से बन गई थी झील
संकरी घाटी होने की वजह से पानी का वेग इतना अधिक था कि उसने ऋषिगंगा प्रोजेक्ट को भी तबाह कर दिया। यही पानी जब तपोवन विष्णुगाड परियोजना तक पहुंचा तो वहां पहले से मौजूद बांध में पानी क्षमता से ज्यादा बढ़ गया। इसके कारण बैराज टूट गया और निचले क्षेत्रों की तरफ चला गया।