लिज्जत पापड़ स्टोरीः 7 महिलाओं की मेहनत, 80 रुपए की उधारी से खड़ा किया 800 करोड़ का बिजनेस

punjabkesari.in Sunday, Dec 06, 2020 - 04:20 PM (IST)

हमारे समाज में औरतों को हमेशा पुरुषों से कम ही आंका जाता है लेकिन कई सफल महिलाओं ने इस बात को पूरी तरह गलत साबित किया है। आज हम जिन महिलाओं की बात कर रहे हैं उन्‍होंने घर से शुरु हुए पापड़ के छोटे से कारोबार को अपनी काबिलियत से सफलता के शिखर पर पहुंचा दिया। गांव की पृष्ठभूमि से आई और कम पढ़ी-लिखी होने के बावजूद अपनी मेहनत से इन्‍होंने वह कर दिखाया जिसे करना आसान नहीं था। माने या ना माने लेकिन भारतीय महिलाओं के लिये ये काफी सम्मान की बात है और ये हौसला भी देती है कि अगर आप अपने हुनर को तलाश लें तो कामयाबी पा सकती हैं।

जी हां, आज हम आपको बताने वाले हैं 'श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़' के बारे में। जिस दिन लिज्जत का पहला पापड़ बेला गया था, उस दिन शायद किसी ने ये सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन यह एक बड़ा उद्योग बनेगा और हजारों महिलाओं के रोजी-रोटी का सहारा भी बनेगा।

कैसे हुई शुरूआत?

मुंबई की रहने वाली जसवंती जमनादास पोपट ने अपना परिवार चलाने के लिए 1959 में पापड़ बेलने का काम शुरू किया था। जसवंती बेन गरीब परिवार से ताल्लुक रखती थी और कम पढ़ी-लिखी भी थी लेकिन उनमें कारोबार की अच्‍छी समझ थी। उन्होंने इस काम में अपने साथ और 6 गरीब बेरोजगार महिलाओं को जोड़ा और 80 रुपये का कर्ज लिया और पापड़ बेलने का काम शुरु किया। इन महिलाओं द्वारा 15 मार्च 1959 को लिज्जत पापड़ का व्यवसाय शुरु किया था। किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि यह बिजनेस सारे भारत की पहचान के तौर पर पूरी दूनिया में अपनी जगह बना लेगा।

80 रुपए उधारी से 800 करोड़ का टर्नओवर

गरीबी के कारण उन्होनें 80 रूपए उधार लेकर व्यवसाय शुरू किया था लेकिन कुछ महीने की मेहनत से ही उन्होंने 80 रुपए चुका दिए और फिर चार पैकेट से 40 और फिर 400 तक पहुंचने में वक्त नहीं लगा। 80 रुपये से शुरू हुआ यह कारोबार आज सालाना 800 करोड़ रुपये का कारोबार करती है। इस कारोबार से तकरीबन 45 हजार महिलाएं जुड़ी हुई हैं और इसके 62 ब्रांच हैं। 

कमजोरी को बनाया ताकत

जितनी भी महिलाएं इस व्यवसाय से जुड़ी है वह आर्थिक रूप से कमजोर है और अपनी खराब आर्थिक स्थिति के कारण ज्यादा शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाई है लेकिन वे इसे अपनी कमी नहीं मानती और यही इस कारोबार की सफलता का राज है। 

पापड़ का नामकरण

1962 में ग्रुप ने अपने पापड़ का नामकरण किया और यह नाम था 'लिज्जत पापड़'। लिज्जत गुजराती शब्द है, जिसका अर्थ स्वादिष्ट होता है। साथ ही, इस ऑर्गेनाइजेशन का नाम रखा गया 'श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़'।

मशीन नहीं हाथों से बनाया जाते है पापड़़

लिज्जत पापड़ देश-विदेश में फेमस हैं और इसके फेमस होने के पीछे का कारण है इसकी गुणवत्ता। इसकी गुणवत्ता का श्रेय इस कारोबार से जुड़ी सभी महिलाएं को जाता हैं जो यहां बनाने वाले पापड़ों की गुणवत्ता का खास ख्याल रखती हैं। यहां अभी भी पापड़ों को मशीन से नहीं बल्कि हाथों से बनाया जाता है और आटा गूंथना, लोई बनाना, पापड़ बनाना, सुखाना और पैंकिग इस पापड़ के मुख्य चरण हैं।

लिज्जत ग्रुप की दो अच्छी बातें

लिज्जत ग्रुप की दो सबसे अच्छी बातें यह है कि लिज्जत पापड़ सरकार से किसी भी तरह की आर्थिक सहायता नहीं लेती और यहां काम करने वाली हर महिला को 'बहन' शब्द से संबोधित किया जाता है, जिस कारण सब एक समान दिखते हैं।

कानाफूसी 'Not Allowed'

बिजनेस बहुत बढ़ा है लेकिन उन्होंने मशीन का इस्तेमाल न करते हुए और महिलाओं को काम पर बढ़ाया हैं। इन महिलाओं ने तय किया है की हम मिलकर काम करेंगे। वहाँ का रूल ही ऐसा है की “कानाफूसी allowed नहीं है “, “जो बोलना है जोर से बोलों” इसी वजह से वहाँ महिलाओं की गॉसिप भी नहीं, झगडा नहीं, इसी वजह से ये काम अच्छी तरह से चल रहा है।

महिलाएं ही चलाती हैं उद्योग

ये कंपनी बाकी कंपनियों से थोड़ी अलग है, इस व्यापार में सभी महिला सदस्य हैं। यहां अध्यक्षता कार्यकारी समिति से सदस्य बारी-बारी से संभालते हैं और वो भी सबकी सहमति से चुने जाते हैं। यानी सबको मौका दिया जाता है जो इस उद्योग की सफलता में एक अहम किरदार निभाते हैं। हर शाखा का नेतृत्व एक संचालिका करती है। यह हर साल बदलती रहती हैं।

महिलाओं से शुरु और उन्हीं के लिए 

लिज्जत पापड़ की कॉ-फाउंडर जसवंती बेन पोपट चाहती तो आज लिज्जत पापड़ के बिजनेस को बहुत आगे ले जा सकती थीं लेकिन जसवंतीबेन उन महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा करना चाहती थी, जिनके बच्चे पढ़ नहीं पा रहे थे और जिसके घर में कोई कमाने वाला नहीं हो। जसवंती बेन का यही मुख्य उद्देश्य था की इन महिलाओं को रोजगार मिले और ये अपना घर चला सके।

Content Writer

Anjali Rajput