1971 भारत-पाक युद्ध: जब 300 महिलाओं ने 72 घंटे में बनाई थी सड़क

punjabkesari.in Sunday, Jul 05, 2020 - 03:51 PM (IST)

1971, जब भारत-पाक के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था। तब 300 महिलाओं की एक टोली ने ऐसा काम कर दिखाया जिसने ना सिर्फ युद्ध में भारतीय सैनिकों की मदद हुई बल्कि वो आने वाली पीढ़ी के लिए प्ररेणा बना।

जब युद्ध में बिना सोचे समझे आगे आई महिलाएं

दरअसल, 8 दिसंबर, 1971 में गुजरात के कच्छ जिले के पास भारत-पाकिस्तान के बीच जंग छिड़ी हुई थी। पाकिस्तान 16 बम गिरा चुका था, जिससे भारतीय वायु सेना की उड़ान भरने वाली एयर स्ट्रिप (सड़क की पट्टी) क्षतिग्रस्त हो गई। वायुसेना ने एयर स्ट्रिप को ठीक करे के लिए BSF से मदद की गुहार लगाई। तभी भुज नाम के गांव से लोग अपनी जान जोखिम में डालकर आगे आए, जिसमें 300 महिलाएं ही थी।

सिर्फ 72 घंटें में बनाई सड़क

इस टीम की सदस्य रही वलबाई सेघानी ने बताया, "9 दिसंबर, 1971 की रात मुझे फौजी जैसा महसूस हुआ। जब हमें सड़क बुलाने के लिए बुलाया गया तब लगातार गोलाबारी हो रही थी लेकिन एक भी महिला पीछे नहीं हटी और पूरे जोश से काम किया। हम 300 महिलाएं थीं, जो घर से पायलट्स के लिए सड़क बनाने के इरादे से निकलीं थीं, ताकि वो उड़ान भर सकें। अगर हम मरते तो भी देश के लिए जान कुर्बान करते" 

बता दें कि 1971 की लड़ाई क दौरान एयरपोर्ट के इंचार्ज कार्णिक भुज थे। उन्होंने कहा, "अगर जंग में महिलाओं को कुछ होता तो तो वह उनका सबसे बड़ा नुकसान होता। मगर, जहाजों की उड़ान के लिए सड़क बनाना भी जरूरी थी इसलिए 50 IAF अफसर व बाकी DSC के 60 जवानों ने इसकी जिम्मेदारी खुद पर ली और काम पूरा करवाया"  

पाक की गोलाबारी के बाद भी डटी रहीं महिलाएं

पाकिस्तान की गोलाबारी के बीच सड़क बनाना आसान नहीं थी लेकिन सभी महिलाओं ने बखूबी काम किया। उन्होंने अफसरों के निर्देश का पालन किया। सेना को जैसे ही पाक विमान के आने की खबर मिलती वो महिलाओंं को संकेत देकर आगाह कर देते और वह झाड़ियों में छिप जाती और सायरन बजने पर दोबारा काम पर लग जाती।

पहले दिन भूखे पेट बंकर में गुजारी रात

पाकिस्तान को इसकी खबर ना लगे इसके लिए महिलाओं ने उसे गोबर से ढक दिया। 3 दिन के इस काम में महिलाएं पहले दिन तो भूखी ही सो गई फिर अगले दिन उन्हें कुछ फल मिले। इस दौरान उन्हें रात भी बंंकर में गुजारनी पड़ती थी, जो किसी भी आम व्यक्ति के लिए आसान नहीं है। चौथे दिन एयर स्ट्रिप तैयार हो गई और शाम 4 बजे भारतीय विमान ने उड़ान भरी। यह पल भारतीय सेना व उन जाबाज महिलाओं के लिए किसी जीत से कम नहीं थी।

लोगों ने की हौंसला अफजाई

महिलाओं के इस जोश व हिम्मत को देखते हुए गांव के लोग, सरपंच और डीएम ने उन्हें प्रोत्साहित किया। वहीं, वायु सेना के स्क्वाड्रन लीडर, विजय कार्णिक ने भी महिलाओं की हौंसला अफजाई की।

इंदिरा गांधी का पुरुस्कार लेने से किया इंकार

3 साल बाद उन्हें इंदिरा गांधी सरकार की ओर से पुरुस्कार से सम्मानित किया गया लेकिन उन्होंने पुरुस्कार लेने से मना कर दिया। उनका कहना था "यह हमने देश के लिए किया है।" कुछ समय बाद माधापुर में गांव में उनके नाम का वीरांगना समारक बनाया गया।

बता दें कि भुज की इन वीरांगनाओं की कहानी को बॉलीवुड एक्टर अजय देवगन एक फिल्म "Bhuj: The Pride of India" का रूप देने जा रहे हैं, जिसका पोस्टर 2019 में रिलीज किया गया था। फिल्म में संजय दत्त, सोनाक्षी सिन्हा व शरद केलकर मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। यह फिल्म जल्द ही बड़े पर्दे पर रिलीज हो सकती है।
 

Content Writer

Anjali Rajput