कामकाजी महिलाओं के लिए आवाज उठाने वाली क्लॉडिया गोल्डिन को अर्थशास्त्र का नोबेल प्राइज
punjabkesari.in Tuesday, Oct 10, 2023 - 01:20 PM (IST)

हार्वर्ड विश्वविद्यालय की प्रोफेसर क्लॉडिया गोल्डिन को श्रम बाजार में स्त्री-पुरुष के बीच भेदभाव संबंधी समझ को बेहतर बनाने के लिए अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। ‘रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज' के महासचिव हैंस एलेग्रेन ने इस पुरस्कार की घोषणा की है। गोल्डिन इस पुरस्कार से सम्मानित होने वाली तीसरी महिला हैं। उन्होंने पुरुषों और महिलाओं के वेतन में अंतर के कारणों को समझने के लिए काफी शोध किया है।
अर्थशास्त्र विज्ञान क्षेत्र में पुरस्कार विजेता का चयन करने वाली समिति के प्रमुख जैकब स्वैनसन ने कहा- ‘‘श्रम बाजार में महिलाओं की भूमिका को समझना समाज के लिए महत्वपूर्ण है। क्लॉडिया गोल्डिन के अभूतपूर्व शोध के लिए धन्यवाद, अब हम अंतर्निहित कारकों के बारे में और अधिक जानते हैं तथा भविष्य में किन बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता हो सकती है।''
गोल्डिन ने अमेरिका के 200 साल के इकनॉमिक इतिहास में महिलाओं की भागीदारी का अध्ययन किया। पुरस्कार समिति के सदस्य रैंडी एच. ने कहा कि गोल्डिन समाधान पेश नहीं करती हैं, लेकिन उनका शोध नीति निर्माताओं को समस्या से निपटने में मददगार साबित हो सकता है। उन्होंने कहा- ‘‘गोल्डिन (श्रम बाजार में) लैंगिक भेदभाव के मूल स्त्रोत पर ध्यान आकर्षित करती हैं और यह कि समय के साथ तथा विकास के क्रम में इसमें किस तरह बदलाव आया। इसलिए, कोई एक नीति काफी नहीं है।''
एलेग्रेन ने बताया कि पुरस्कार की घोषणा के बाद 77 वर्षीय गोल्डिन ‘‘आश्चर्यचकित और बेहद खुश'' हुईं। नोबेल पुरस्कार के तहत विजेता को 10 लाख डॉलर का पुरस्कार दिया जाता है। दिसंबर में ओस्लो और स्टॉकहोम में होने वाले पुरस्कार समारोहों में विजेताओं को 18 कैरट का स्वर्ण पदक और एक डिप्लोमा भी दिया जाता है।
बता दें कि क्लाउडिया गोल्डिन फिलहाल हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स की प्रोफेसर के तौर पर कार्य कर रही हैं। वह एनबीईआर के जेंडर इन द इकोनॉमी ग्रुप की को-डायरेक्टर भी हैं। क्लाउडिया गोल्डिन 1989-2017 के दौरान एनबीईआर के अमेरिकन इकोनॉमिक प्रोग्राम की डेवलपमेंट डायरेक्टर थीं। उन्होंने कहा कि डिटेक्टिव होने के पीछे सोच ये रहती है कि आप खुद से सवाल पूछते रहें और उनके सवालों के जवाब मिलने तक कार्यरत रहें. आज भी उनके अंदर ये सोच जिंदा है।