बच्चा नहीं रख पाता दूसरे के सामने अपनी बात तो क्या करें?

punjabkesari.in Sunday, May 13, 2018 - 05:01 PM (IST)

केवल बच्चों के सामने ही नहीं, बड़ों के सामने भी यह समस्या अक्सर रहती है कि हमें उचित ढंग से अपनी बात, राय या अपनी भावना व्यक्त करना नहीं आता। न ही मां-बाप या अध्यापक इस गुण को विकसित करने की ओर कोई ध्यान देते हैं। जब किसी का बच्चा किसी अन्य बच्चे से पिटकर आता है तो कई पिता उसे यह जरूर सिखाते हैं कि कोई एक मारे तो तुम दो मारकर आओ। परंतु न तो इससे समस्या का हल होता है और न ही यह स्वस्थ व पॉजिटिव संवाद करने का कोई सभ्य ढंग है। ऐसा करने से तो बच्चों के आपसी संबंधों के तालमेल में गंभीर समस्याएं ही उत्पन्न होने का खतरा बना रहता है।

 


शिक्षा का उद्देश्य है कि बच्चे अपने पांव पर अपने बलबूते खड़े हो सकें और वह अपनी बात, राय भावना या अपना पक्ष रखते हुए किसी की भावनाओं को चोट न पहुंचाएं। बच्चों में बिना सामने वाले को नीचा दिखाएं अपनी बात दृढ़ता पूर्वक कहने का कौशल होना जरूरी है।

 


अक्सर देखने में आता है कि बच्चे ही नहीं, बड़े भी अपनी भावना प्रकट करते समय उग्र हो जाते हैं। कुछ बच्चे दूसरों को चोट पहुंचाते हुए अपनी बात कहते हैं तो कुछ डर-डर के सबसे सामने अपनी बात रखते हैं। उन्हें इस बात का अहसास ही नहीं कि वह दब्बू बनते जा रहे हैं। ऐसे में माता-पिता और अध्यापकों को यह बत अच्छी तरह से समझनी होगी कि सवांद करने के ये दोनों ही तरीके गलत हैं। जहां उग्र बच्चे दूसरों को हमेशा दोष देने, अपशब्द या गालियां निकालने वाले, डराने-धमकाने वाले या लड़ाके किस्म के बन जाते हैं। नहीं दब्बू बच्चे उन उग्र बच्चों की गलत बातों को भी मानने से इंकार की हिम्मत नहीं जुटा पाते। वह न चाहते हुए भी उन आक्रामक बच्चों के शिकार हो जाते हैं।

 


1. इसी कारण से दब्बू बच्चों को न कहना सिखलाना बहुत जरूरी है। जितना बच्चे अपने आप पर विश्वास करेंगे उतना ही अधिक वह आक्रामक किस्म के बच्चों से बचना या निपटना सीख सकेंगे। इसके लिए उन्हें आक्रामक बच्चों की आंखों में देखते हुए न कहना सिखलाएं। इसके अलावा बच्चों को यह भी सिखलाने की जरूरत है कि अगर उन्हें किसी भी बच्चे, बड़ा-बुजुर्ग, पड़ोसी, रिश्तेदार, कोई अन्य जानकर या अनजान व्यक्ति धमकाएं या कोई गलत हरकत करें तो वह बिना डरे अपने माता-पिता से इस बात को सांझा करें।

 

2.  अपने बच्चों को आक्रमक बच्चे की आंखों में देखते हुए न कहना सिखाएं। इसके अलावा उन्हें यह भी यह भी सिखाएं कि उन्हें क्या और कैसे जवाब देना है।

 

3. बच्चों को सिखलाएं कि उन्हें कोई चीज कैसे मांगनी चाहिए जैसे आपके पढ़ने के बाद क्या कुछ देर के लिए मैं यह पुस्तक ले सकता हूं।

 

4. आप उन्हें बोर्ड पर आई शब्द की उदाहरण दें और फिर बच्चो को भी कई परिस्थितियां बताते हुए और उदाहरण देने को प्रोत्साहित करें। उन्हें बताएं कि आई संदेशों को पॉजिटिव भावनाओं को व्यक्त करने के लिए प्रयोग कर सकते हैं।

 

5. उन्हें बताएं कि दृढ़ता पूर्वक किन्तु सभ्य व विनम्र ढंग से किसी के अनुरोध, विनती या निवेदन का किस ढंग से जवाब देना चाहिए।

 


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