हाई कोर्ट ने उठाया मुद्दा,शादी से पहले क्यों जरूरी ‘रोके’ की स्टैंप?

punjabkesari.in Friday, Apr 28, 2017 - 12:37 PM (IST)

पंजाब केसरी(लाइफस्टाइल) 'रोका' यानि शादी से पहले लड़की वालो की तरफ से लड़के को दिया जाने वाला शगुन है। यह सैरेमनी एक तरह से टोकन का काम करती है,जिसमें यह तय हो जाता है कि लड़का-लड़की आने वाले समय में शादी के बंधन में बंध जाएंगे। पंजाब में इस परंपरा को 'रोका' कहा जाता है लेकिन देश के बाकी हिस्सों में इस रस्म को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। 
 

उच्च न्यायालय के एक बैंच ने इस रस्म की आलोचना की है। हाल ही में एक महिला ने एक पारिवारिक कोर्ट में अपने पति के खिलाफ तलाक का केस दर्ज किया,जिसकी अध्यक्षता जस्टिस प्रदीप नंदराजोग और प्रतिभा रानी कर रहे हैं। इस केस में पति-पत्नी दोनों एक दूसरे पर 'रोके' की रस्म में दिए गए शगुन और गिफ्ट को लेकर आरोप लगा रहे हैं। कानूनी दलील के दौरान, महिला ने शिकायत की कि उसके पति का परिवार उसके पिता द्वारा दिए गए शगुन और उपहारों से खुश नहीं था।
 

रोका की यह रस्म 25 साल पहले निभाई जाती थी। इसका महत्व यह है कि लड़की के परिवार वालों की तरफ से लड़के के परिवार वालों को दिए गए शगुन से समाज को यह बताया जाता है कि 'रोका' से अब जीवन साथी की खोज रोक दी गई है। इन सब बातों से ऐसा लगता है कि रोका एक बिजनेस लेन-देन की तरह है। कभी-कभी हम दुकान से कोई सामान खरीदने के लिए जाते हैं तो उसकी बुकिंग के लिए थोड़ी रकम दे देते हैं ताकि इसे बाद में खरीद सकें। यही बात इस प्रश्न को उठाती है कि क्या शादी एक सौदा है?
 

आज के जमाने में लड़का और लड़की दोनों आर्थिक रूप से स्वतंत्र होते हैं,लव मैरिज भी आजकल आम बात है। फिर आज के समय में दुल्हे को बुक करने के लिए 'रोका सैरेमनी' का क्या जरूरत है।इसके अलावा और भी बहुत सी विचारधाराएं है जो रोके जैसी परंपरा को आज के समय के लिए अच्छी नहीं मानी जाती। 'रोका' की विचारधारा को हाई कोर्ट एक सामाजिक बुराई के तौर पर देखता हैं। इस बुराई की ओर न्यायपालिका का  ध्यान देना आज के समय की जरूरत भी है। 


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